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निरंकुश उन्मुक्तता कैसे थमे — लता शर्मा तृषा

 

वर्तमान समय का दौर ऐसा हो गया है कि लोग बाहर ही नहीं घर में भी अपने बड़े बुजुर्गो के सामने निरंकुश,उदंड, होते जा रहे हैं।हर कोई उन्मुक्त बिना किसी दबाव, बंधन के स्वतंत्र जीवन जीना चाहता है। यहां तक तो चलिए सह भी लें मगर नए दौर के आड़ में लोग उछंखृल हो रहे हैं,मान मर्यादा से कोसों दूर अपनी सभ्यता संस्कृति सब भुलते जा रहे हैं ।जो हमारे समाज, संस्कार के लिए गहन विचार का विषय है।

घर वालों को चाहिए इनके रहने सहन,चाल चलन,हाव भाव, पहरावा, दोस्ती कैसे लोगों से की जा रही सभी पर विशेष ध्यान ही नहीं बल्कि कड़ाई बरतना चाहिएं।
और सबसे अहम बात घर वालों को स्वयं मर्यादित होना चाहिए।मंद बयार में उडिए यह उड़ान सुखदाई हो सकता किन्तु तेज हवा की संगत बिना कुछ सोचे समझे आपको ले जा दूर फेंक सकता है। उन्मुक्तता लोगों को बेलगाम कर बुराईयों की ओर ढ़केलता है,इसके चलते इंसान बहुत कुछ ऐसा कर जाता है जो अपराध,आत्महत्या जैसे कदम भी उठवा सकता है। इसलिए अनुशासन, निरंकुशता पर लगाम जरूरी है। मर्यादा में बंध अनुशासित रहना नितांत आवश्यक है।

लता शर्मा तृषा

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