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नशे के विरुद्ध युद्ध — प्रवीणा सिंह राणा प्रदन्या

 

आज का समाज एक अदृश्य मगर विनाशकारी युद्ध से जूझ रहा है—नशे के विरुद्ध युद्ध, यह कोई सीमाओं पर लड़ा जाने वाला युद्ध नहीं है, न ही इसमें टैंक या तोपों की जरूरत होती है। यह युद्ध लड़ा जाता है घरों के भीतर, स्कूलों के अहातों में, गलियों की खामोश दीवारों पर और सबसे अधिक—मानव मन के भीतर।

नशा आज केवल एक व्यक्तिगत बुरी आदत नहीं रह गया है; यह एक सामाजिक महामारी बन चुका है। शराब, सिगरेट, अफीम, गांजा, चरस से लेकर आधुनिक रसायनिक और सिंथेटिक ड्रग्स तक—इनका फैलाव भयावह गति से हो रहा है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि नशे का शिकार आज का युवा वर्ग बन रहा है, जो किसी भी राष्ट्र का भविष्य होता है।

इस युद्ध की त्रासदी यह है कि इसका कोई एक चेहरा नहीं है। कभी यह एक होनहार छात्र की आकांक्षाओं को निगल जाता है, तो कभी एक मेहनतकश मजदूर के परिवार को तोड़ देता है। कभी यह एक बेटी के हाथ पीले होने के सपने को धुआँ बना देता है, तो कभी किसी माँ की गोद को सूना कर जाता है।

सरकारी स्तर पर प्रयास हो रहे हैं—नशा मुक्ति केंद्र, जन-जागरूकता अभियान, कानून। लेकिन ये तब तक अधूरे हैं, जब तक समाज स्वयं जागरूक न हो। जब तक हर माता-पिता, हर शिक्षक, हर पड़ोसी यह संकल्प न ले कि वे केवल अपने बच्चों की चिंता नहीं करेंगे, बल्कि पूरे समाज के बच्चों की देखभाल में भागीदार बनेंगे।

नशे से लड़ने के लिए संवाद आवश्यक है। डर, शर्म और चुप्पी को तोड़ना होगा। हमें अपने बच्चों से खुलकर बात करनी होगी—न सिर्फ यह बताने के लिए कि नशा बुरा है, बल्कि यह समझाने के लिए कि वे अकेले नहीं हैं। उनके पास विकल्प हैं, सहायता है, और सबसे बढ़कर—भरोसा है।

यह युद्ध लंबा है, लेकिन नामुमकिन नहीं। यदि हम सब मिलकर लड़ें, तो हर गली से एक सुकून भरी साँस निकलेगी, हर घर में एक आशा जगेगी और हर बच्चा अपने सपनों के साथ बड़ी निडरता से उड़ान भर सकेगा।

अब समय आ गया है—नशे के विरुद्ध अभियान को केवल नारा नहीं, जन आंदोलन बनाया जाए।

प्रवीणा सिंह राणा प्रदन्या

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