पत्रकारिता कितनी निष्पक्ष — प्रवीणा सिंह राणा प्रदन्या

पत्रकारिता समाज का दर्पण होती है। यह एक ऐसा पेशा है, जिसका उद्देश्य जनता को सही सूचना देना, जनमत को दिशा देना, और सत्ता पर अंकुश बनाए रखना होता है। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, जो शासन, न्याय और विधायिका के साथ मिलकर व्यवस्था को संतुलित बनाए रखने में सहायक होता है। किंतु प्रश्न यह उठता है कि क्या आज की पत्रकारिता अपने इस उत्तरदायित्व को निष्पक्षता से निभा रही है?
निष्पक्षता का अर्थ है—सत्य के आधार पर रिपोर्टिंग करना, न कि किसी विशेष विचारधारा, पार्टी या व्यक्ति के प्रभाव में आकर समाचार प्रस्तुत करना। एक निष्पक्ष पत्रकार वही होता है, जो तथ्यों को बिना तोड़े-मरोड़े जनता के सामने रखे। निंदा या प्रशंसा, समर्थन या विरोध—ये सब पाठक-श्रोता का निर्णय होना चाहिए, पत्रकार का नहीं।
वर्तमान समय में जब हम मीडिया को देखते हैं, तो अनेक बार ऐसा प्रतीत होता है कि निष्पक्षता का स्थान ‘झुकाव’ ने ले लिया है। कुछ मीडिया हाउस किसी एक राजनीतिक दल के समर्थन में समाचार प्रस्तुत करते हैं, तो कुछ अन्य किसी दूसरे के विरुद्ध मुहिम चलाते हैं। इस प्रकार पत्रकारिता का वह संतुलन जो पहले समाज को दिशा देता था, अब कई बार दिशा भ्रम उत्पन्न कर देता है।
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अनेक मीडिया संस्थानों के मालिक स्वयं राजनीति से जुड़े हैं, जिससे पत्रकारों की स्वतंत्रता बाधित होती है।
पूंजीपतियों और बड़े उद्योगपतियों से मिलने वाले विज्ञापनों की निर्भरता ने निष्पक्ष रिपोर्टिंग की रीढ़ को कमजोर किया है।आज समाचार का मूल्य उसके ‘वायरल’ होने से तय होता है, न कि उसकी सच्चाई से। सनसनी और डर फैलाकर टीआरपी बढ़ाना कई चैनलों का मुख्य उद्देश्य बन गया है। डिजिटल मीडिया का अनियंत्रित स्वरूप: सोशल मीडिया पर बिना तथ्य जांचे खबरें फैल जाती हैं, जिससे भ्रम फैलता है और गंभीर पत्रकारिता कमजोर होती है।
फिर भी, अंधकार में कुछ दीप अभी भी जल रहे हैं। देश में कई पत्रकार और मीडिया संस्थान ऐसे भी हैं, जो निडरता से निष्पक्ष होकर सच्चाई को उजागर कर रहे हैं। कुछ रिपोर्टर बिना किसी निजी स्वार्थ के, जोखिम उठाकर जमीनी सच्चाई सामने लाते हैं। उनकी कलम आज भी उम्मीद की लौ जलाए हुए है।
पत्रकारिता का मूल धर्म है—सत्य की सेवा। जब तक पत्रकारिता निष्पक्ष, निर्भीक और जनहितकारी रहेगी, तब तक वह लोकतंत्र की रीढ़ बनी रहेगी। लेकिन यदि वह एकपक्षीय, बिकाऊ या डरपोक हो जाएगी, तो वह समाज को गुमराह कर सकती है।
अतः आवश्यकता है कि पत्रकार, संस्थान और पाठक—सभी मिलकर पत्रकारिता की आत्मा को जीवित रखें।
क्योंकि,…
“कलम की ताक़त, बंदूक से बड़ी होती है,
पर तभी जब वह सत्य की स्याही से चले।”
प्रवीणा सिंह राणा प्रदन्या