पुस्तक-समीक्षा (बंदूक और कलम) अनुभवों की पुनरावृत्ति -जनार्दन मिश्र (कवि, कथाकार, समीक्षक) संपादक- कालका मेल

कवि देवेन्द्र सिंह से मेरी पहली मुलाकात शास्त्रीय गायक सुपरिचित कवि विजय कुमार जी के निजी निवास स्थान कालका जी, नई दिल्ली में एक कवि गोष्ठी के अवसर पर हुई थी, जिसकी मैं अध्यक्षता कर रहा था। उस कवि गोष्ठी में सभी कवियों ने अपने-अपने अनुभव की आँच को अपनी अभिव्यक्ति में अधिक से अधिक उतार देने की कोशिश की। उनसे दूसरी मुलाकात काव्याजंलि समारोह में हुई, जिसकी संयोजिका शास्त्रीय गायिका रश्मि शर्मा थीं, जो विजय कुमार की धर्मपत्नी तथा बागेश्री संगीत कला केन्द्र की निदेशिका हैं और विजय कुमार जी इस संस्था के अध्यक्ष हैं। यह काव्यांजलि समारोह बागेश्री संगीत कला केन्द्र (रजि.) के तत्वावधान में संस्था के अध्यक्ष के निजी सभागार में ही आयोजित हुआ था। इस काव्यांजलि समारोह में प्रदेश के कई नामी-गिरामी कवि, कवयित्रियाँ कविता पाठ के लिए आमंत्रित थे उसमें कवि देवेन्द्र सिंह भी शामिल थे। यह समारोह भी मेरी अध्यक्षता में संपन्न हुआ; इसलिए सभी कवि-कवयित्रियों की कविताओं का रसास्वादन समीक्षकीय दृष्टि से किया। इस समारोह में कवि देवेन्द्र सिंह ने नूतन बिंबों, प्रतीकों तथा सुंदर शिल्प विधान द्वारा श्रोताओं का मन मोह लिया। मैंने भी उनके गीतों में छन्दबद्धता, रस, अलंकार, स्वर, ताल, गति, वर्ण आवृत्ति के साथ-साथ संगीत के प्रमुख तत्वों को गहराई से अनुभव किया। उनकी सृजन की एक बड़ी विशेषता यह है कि जिस प्रसंग का वर्णन करते हैं उसमें तन्मयता से डूब जाते हैं।
कवि सम्मेलन के बाद सभी कवियों से औपचारिक बातचीत हुई और कुछ ही दिनों के बाद देवेन्द्र जी ने अपनी प्रथम काव्य कृति ‘बंदूक और कलम’ ‘स्पीड पोस्ट से मेरे पास अवलोकनार्थ भेंज दीं।
उनके इस काव्य-संग्रह में बीस गीत एवं बीस कविताएँ संगृहीत हैं। राष्ट्रपति पदक से सम्मानित केन्द्रीय सैन्य अधिकारी देवेन्द्र जी की रग-रग में राष्ट्रभक्ति की अविरल धारा प्रवाहित होती है। वे अपने प्रथम गीत ‘स्तवन’ में लिखते हैं-
कलम सत्य की अनुगामी हो,
नहीं प्रलोभन की हामी हो।
लेखन का सत-धर्म निभाए,
और सदा ही निष्कामी हो।
मातु शारदे ! मसि-पथ – पथ प्रेम- सुधा से संवृत कर दो।
अनेक कवियों ने माँ शारदा (सरस्वती) की वंदना अपने स्तर पर की हैं। कवि देवेन्द्र माँ शारदे से प्रार्थना करते हैं कि मेरी कलम सदैव सत्य का अनुसरण करें, लोभ-लालच से कभी संपृक्त न हो, कामना एवं वासना से निर्लिप्त हो।
‘धारा अवध की सिसकी’ गीत शीर्षक में कवि ने राम को केन्द्र में रख कर ऐसा बिंब खिंचा है कि पाँच सदी का ग्रहण हमारे आँखों के सामने उपस्थित हो जाता है। यद्यपि योग वसिष्ठ के अनुसार राम परमब्रह्म परमेश्वर हैं। वे सुख-दु:ख से परे हैं, फिर भी बाबर की कारस्तानियों के कारण राम की मूर्ति किस तरह अपने जन्म स्थान से निर्वासित रही, उसकी पीड़ा से हम पाँच सदी तक आहत रहे। परतंत्रता के कारण लौकिक रूप से हमारे राम हमारे सामने ही भीषण लाचारी में रहने को विवश थे। दु:ख के क्षणों में हम राम को परमब्रह्म के रूप में याद करते हैं, पर सुख क्षणों में तो हम उन्हें दशरथ के पुत्र, अयोध्या के राजा ही मानते आ रहे हैं। अयोध्या में उनकी मूर्ति की पुन: स्थापना, प्राण-प्रतिष्ठा को हम अपने जीवन के गौरव क्षण से जोड़कर देखते आ रहे थे। इस गीत के अंतिम खंड की बानगी देखें –
रघुकुल का वह दिव्य दिवाकर,
उदय मही पर पुन: हो रहा है।
रघुनंदन निजधाम आ रहे,
और दशानन वंश रो रहा।
कितने कुत्सित किए प्रयोजन,
कालनेमि बन निशाचरों ने ?
क्या-क्या झूठ नहीं बोला था,
न्यायलय में अधम नरों ने ?
प्रभु-द्रोही अब बस काटेंगे,
फसल खार की जो बोई है।।
‘पावस, सावन, प्रीति’ शीर्षक गीत में कवि कहता है कि श्रृंगार जीवन का अभिन्न भाग है,पर किस समय देश आहत हो,उस समय कविताओं में श्रंगृार की नहीं, अंगार की ज्वाला होनी चाहिए। चाँद, चाँदनी, चातक, सरिता, प्रेम मिलन, अभिसार, कंगन, विंदियाँ, केश, महावर पर रचना करने के बजाय उसमें प्रखर तेग की चर्चा होनी चाहिए, दुष्टों के संहार की चर्चा होनी चाहिए।
‘बंदूक और कलम’ शीर्षक कविता ही इस काव्य-संग्रह का भी शीर्षक है। किशोरावस्था से ही देवेन्द्र सिंह को साहित्य खासकर कविता से लगाव हो गया था,पर केन्द्रीय पुलिस सेवा में शामिल होते ही लेखनी की धार बंदूकों के शोर में कुंद होती गई और कभी दुरूह तो कभी सुगम राहों से चलते हुए जीवन के चार दशक बीत गए, पर कविता से गहरा लगाव होने के कारण कवि पुन: साहित्य सृजन में रत हो गया। तभी तो प्रार्थना की मुद्रा में वे कहते हैं-
याचना माँ शारदे से
लेखनी को धार दे दो।
शेष जीवन के लिए माँ
शब्द का संसार दे दो।
शस्त्र तज कर भी कलम से
राष्ट्र हित लड़ता रहूँ।
जो तिरोहित हो गया था, भाव मन फिर पा रहा है।
कवि ने कभी अपने विचारों से समझौता नहीं किया और प्रण करता है कि आगे भी वह सत्य सृजन के लिए साहित्य से जुड़ा रहेगा।
‘भीष्म हुए कुछ द्रोण हो गये’ शीर्षक कविता में कवि ने पश्चिम बंगाल में नारियों के शोषण को मूक दर्शक के रूप में देखने पर भीष्म और द्रोण की श्रेणी में ममता की गिनती की है;क्योंकि वे लोग द्रौपदी के चीर हरण के समय मुक दर्शक बने रहे।
इस शीर्षक कविता के पद्यांशों पर गौर फरमाएं-
अबलाओं की करुण चीख
यदि सिंहासन चुप सह जाता है।
निर्बल आहों से शापित वह
स्वयं शीघ्र ही ढह जाता है।
छांदस रचनाओं की विशेषता यह होती है कि चेतना के साथ अंतरंगता भी स्थापित करता चलता है। इस संग्रह के गीत एवं कविताएँ जीवन के प्रति अविश्वास नहीं, विश्वास की स्थिति बनाते हैं। कविता के नए बिंबों को नए परिवेश में प्रस्तुत करने में कवि देवेन्द्र सिंह निपुण हैं और यही निपुणता उनको कवियों की विशिष्ट श्रेणी में स्थान दिलाती है। इस संग्रह के सभी गीत एवं कविताएँ अनुभव की आँच पर पकी हुई हैं, जिन्हें कवि ने हम सबके सामने जीवंत किया है।
पुस्तक: बंदूक और कलम
(काव्य-संग्रह)
कवि – देवेन्द्र सिंह
प्रकाशक – शब्दसाहित्य
(छत्तीसगढ़)
पृष्ठ – 106 पेपर बैक
मूल्य – रु. 250/- रुपये