रसीले आम — डॉ मीरा कनौजिया काव्यांशी

फलों में फल आम, है प्रमुख फलों का राजा।
सीजन हो या ना हो ,सभी मन को खूब भाता।
मधुर मधुर होता है ,पका दशहरी खूब सुहाता।
बच्चे बूढ़े या हो जवान, मुन्ना जी भर कर खाता।
दादा की बगिया में लगे पेड़ ,मीठे मीठे मधुर आम।
दादा लेआए हरी हरी कच्ची केरी, ढेर सारे तमाम।
दादी डालती, आम का खूब ढ़ेर सारा मीठा अचार।
मोहल्ले पड़ोस में देती,कमाती ढ़ेर सारा व्यवहार।
खट्टी -खट्टी आमों की केरी काट कर खूब सुखाती।
अरहर की दाल में अम्मा आम की खटाई डालती।
स्वाद बढ़ जाता दाल का, बार-बार बच्चे दाल मांगते।
दादा मेरे आम का मीठा- खट्टा पन्ना खूब रोज बनाते।
दादा बोले आम बचा कर रखना,मैंगो शेक बनाना।
मुन्नी बोली दादा हमको आज दो गिलास शेक पीना।
आम का मौसम जब आए सबका,दिलखूब ललचाए।
कच्चे,पक्के,पीले बूढ़े बच्चे सबके दिल को खूब भाए।
आम खाने से स्वास्थ्य हमेशा रहता ,चुस्त और दुरुस्त।
सीजन में खूब आम सब खाएं,और खूब रहें सदास्वस्थ।
पूजन हवन में ईश्वर के समक्ष, आम- पात का वंदनवार।
शादी ,मंडप,पूजन,हवन,आम -पात,पल्लव सौंदर्य अपार।
डॉ मीरा कनौजिया काव्यांशी