संक्षिप्त लेख:आलोचना – पालजीभाई राठोड़ ‘प्रेम’

आलोचना से घबराने की जरूरत नहीं है। आलोचना से उबालना मत।अगर तुम अपनी काबिलियत पर विश्वास रखते हो तो किसी की तारीफ या आलोचना से फर्क मत पड़ने दो क्योंकि तारीफ में अक्सर दिखावा होता है और आलोचना में जलन। ना घमंड में रहो ना गुरुर में रहो बस जिससे विचार ना मिले उनसे दूर रहो।जीवन में दो तरह के लोग होते हैं जो हमें दुःख पहुंचाते हैं। कुछ तो गलती से कुछ कार्य कर देते हैं जो हमें दुःख देता है और कुछ लोगों का एक निश्चित तरीका होता है,उन्हें पता होता है आपको कैसे दुःख पहुंचाना है।आपको हतोत्साहित करके आपको गुस्सा करके,आपको नीचा दिखाकर मार पीट करके आदि उनको पता होता है।आपके दिल को सबसे ज्यादा दुःख किस बात से होता है वे वही करते हैं।पहले वाले को माफ़ी दी जा सकती है दूसरे वाला तो हमें अंदर तक तोड़ देता है। तन मन से शिथिल कर देता है। ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए।जो आप को नहीं समझते है उन्हें बिल्कुल भी मत समझाइए समुद्र खारा है खारा ही रहेगा उसमें शक्कर मत मिलाइए।सच्चाई को स्वीकार करना शुरू करें सारे डर स्वयं खत्म हो जाएंगे।सबकी नजरों में आप नेक नहीं हो सकत क्योंकि सब के चश्मे का नंबर एक नहीं होता। जो किसी के किए उपकार को भूल जाता है।अगर किसी ने कभी भी और थोड़ा भी आपके साथ कुछ अच्छा किया है तो उसके प्रति सदैव कृतज्ञता का भाव बना रहना चाहिए। जिसके जीवन में कृतज्ञता है।उसके सहयोग के लिए हजारों हाथ स्वतः उठ जाया करते हैं। फूलों में भी कीड़े पाए जाते है पत्थरो में भी हीरे पाए जाते हैं।बुराई छोड़कर अच्छाई देखेंगे तो नर में भी नारायण पाए जाते हैं।ईश्वर के हर फैंसले पे खुश रहो क्योंकि ईश्वर वो नहीं देता जो आपको अच्छा लगता है बल्कि ईश्वर वो देता है जो आपके लिए अच्छा होता है ।
जिन्दगी को जीओ उसे समझने की कोशिश ना करो। चलते वक्त के साथ चलो वक्त को बदल ने की कोशिश न करो। दिल खोल कर सांस लो अंदर ही अंदर घुटने की कोशिश न करो। कुछ बातें ईश्वर पर छोड़ दो सब कुछ खुद सुलझाने की कोशिश न करो। आलोचना भी उसी की सार्थक होती हैं जो सहायता का भाव अपने भीतर रखता है।जो आपकी जिंदगी में कील बनकर बार बार चुभे,
उसे एक बार हथौड़ी बनकर ठोक देना चाहिए। निंदा ही इस संसार का नियम है जो आपको भरपूर मिलेगी प्रशंसा तों ज्यादातर लोग मजबूरी और स्वार्थ में करते हैं।लोगों की निंदा से परेशान होकर अपना लक्ष्य मत बदलना, क्योंकि सफलता शर्म से नहीं साहस से मिलती हैं।
पालजीभाई राठोड़ ‘प्रेम’ सुरेंद्रनगर गुजरात