संक्षिप्त लेख: कर्म से ही मनुष्य महान — पालजीभाई वी राठोड़ ‘प्रेम’

जीवन में इकट्ठी की हुई संपत्ति साथ नहीं आती बल्कि किए हुए सत्कर्म अपने साथ देते हैं। हमारा जन्म मृत्यु सारा संसार कर्म से आधीन है। कर्म से ही मनुष्य महान है।कर्म से सारा जहान है।ये सब कर्म का ही खेल है।
कर्म फल की चिंता किए बिना पूरे मनोयोग से किया गया कर्म ही सफलता की दिशा तय करता है। प्राय:व्यक्ति अपनी बोलचाल की भाषा में किंतु परंतु जैसे शब्दों का उपयोग करता है। इसके पीछे या तो व्यक्ति किसी बात का स्पष्टीकरण चाहता है या फिर टालना चाहता है।
किसी भी कार्य की शुरुआत करने से पहले तार्किक समझ होना जरूरी है लेकिन किसी अच्छे कार्य की शुरुआत से पहले ही आलस अथवा किसी बहाने की वजह से टालना अपनी ही प्रगति की राह को रोकने से कम नहीं है।
जब कुछ न हो तो धैर्य की परीक्षा होती है और जब सब कुछ हो तो व्यवहार की परीक्षा होती है। इसलिए किंतु परंतु या किसी प्रकार का संदेह मन में लाए बिना जो कर्म करने जा रहे हैं उसे मनसा वाचा कर्मणा करें। सफलता अवश्य मिलेगी।
जब हम असंभव शब्द का प्रयोग करते हैं तो
कहीं ना कहीं हमारा आत्मविश्वास कमजोर है जो लोग बहादुर होते हैं बुद्धिमान होते हैं
अपने आप पर भरोसा रखते हैं मेहनत से डरते नहीं हैं वो असंभव शब्द का प्रयोग नहीं करते कोशिश करते हैं अपने रास्ते खुद बनाते हैं और जीत जाते हैं।अच्छे व्यक्ति को पहचानने के लिए अच्छा हृदय चाहिए तेज दिमाग नहीं क्योंकि दिमाग हमेशा तर्क करता है
हृदय हमेशा प्रेम भाव देखता है।वो हाथ हमेशा पवित्र होते है जो प्रार्थना से ज्यादा दूसरो की सेवा के लिए उठते है।
निःसन्देह सत्कर्म ख़ामोशी से भी होते हैं, मैंने अक्सर देखा है पेड़ों को बिना कुछ कहे सुने छाया देते हुए।
“कुछ भी बचे न शेष जीवन जटिल सवाल है, मिलेगा फल विशेष कर्म करो करते रहो।”
श्री पालजीभाई वी राठोड़ ‘प्रेम’ सुरेंद्रनगर (गुजरात)