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सासु माँ — माया शर्मा 

 

वैदेही का आज ससुराल में पहला दिन था l ना जाने कितने सवाल उसके मन की दरिया में गोते लगा रहे थे l ससुराल क्या होता है इसके बारे में बस ये ही सोंच बना रखी थी उसने कि ससुराल में उसकी इच्छाओं को दफन करके बस वो ही करना होगा जो उसके ससुराल वालों के हिसाब से उचित होगा l
ये ही विचार मन में कौंध रहे थे कि अलार्म बजने पर वैदेही हडबडा के उठ बैठी। जल्दी से नहा- धोकर सुन्दर सी साड़ी पहन कर मंदिर में पूजा करके जैसे ही मुड़ी अचानक सास को खड़ा पाया। सास ने बड़े प्यार से वैदेही के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- बेटा तुम इतनी जल्दी कैसे उठ गयी ?
शादी की रस्मों -रिवाजों में थक गयी होगी। थोड़ा और आराम कर लेती। ये घर भी तो तुम्हारा अपना ही है l ये सुनकर वैदेही की ससुराल के प्रति जो सोंच थी वो गलत साबित हुई। उसने अपनी सास को गले लगाकर बोला ।
माजी-मैंने आप सब के बारे में ना जाने क्या- क्या सोच लिया था, आप तो बिल्कुल अलग निकले l
वैदेही की सास ने कहा- बेटा हर सास बुरी नहीं होती l मैंने तुम्हें अपनी बेटी माना है और हमेशा बेटी ही मानुंगी।आज वैदेही की खुशी का ठिकाना ही नहीं था। आज उसे अपनी एक और माँ के आँचल की छांव मिल गयी थी l
*माया शर्मा *

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