शख्शियत — मंजू शर्मा

इस ब्रह्मांड में सबसे छोटा और सबसे बड़ा शब्द है माँ! और इस शब्द के पहले अगर दीदी जुड़ जाए, तो बनता है दीदी मांँ! जी हाँ, आपने सही समझा, हम साध्वी ऋतंभरा जी की बात कर रहे हैं। यह वह शख्सियत है जिसे मातृत्व दिवस पर भुलाया नहीं जा सकता। इस पूरे ब्रह्मांड में दीदी मांँ के नाम से एकमात्र महिला हैं वे। दूसरा किसी का यह नाम सुनने को नहीं मिलता। माँ के साथ दीदी की ममता सोने पर सुहागे का काम करती है।
ऐसी ममता कि भगवान राम को उनका स्थान दिलाने के लिए अपना जीवन सर्वत्र निछावर कर दिया
ऋतंभरा जी को आज कौन नहीं जानता। इस बार मातृ दिवस पर उनसे बड़ी शख्सियत को ढूंढ पाना हमारे लिए मुश्किल था इसलिए हमने अपनी कलम से उस मांँ को उस बहन को चरण वंदन करने का प्रयास किया है।
अनाथों की जननी,वात्सल्य की मूर्ति
सोने-सा तपाकर पकाया खुद को,
तब जाकर निखरी वात्सल्य प्रेम की प्रतिमूर्ति।
वात्सल्य ग्राम की संस्थापक कहलाती
ईमानदारी और कर्मठता
रोम-रोम से झलक कर करती है।
इस देवी के संघर्षों की पूर्ति।
गुरु कृपा से मिला ये चोला जिसे पहनकर वो बनी
साध्वी ऋतम्बरा दीदी ।
पंजाब के लुधियाना शहर में जन्मी एक बच्ची,जिनका घर का नाम निशा था, बचपन से ही अध्यात्म की ओर प्रेरित थी। 16 वर्ष की आयु में ही उन्होंने घर छोड़ दिया और हरिद्वार में गंगा के किनारे गुरुजी की शरण में पहुंँची। गुरुजी के चरणों में माथा टेकते ही उनकी आँखों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी और मन परमानन्द का अनुभव करने लगा।
गुरुजी ने जब उनसे नाम पूछा, तो वह चुप रही। तब गुरुजी ने उन्हें ज्ञानज्योति नाम दिया। इसके बाद एक साल की कठिन यात्रा शुरू हुई। तरुण अवस्था में ही घर से जाने के कारण उनके परिवार को बहुत कुछ सहना पड़ा। जब वह घर लौटी, तो परिवार ने उन्हें घर में रहने का दबाव बनाया, लेकिन उनकी अध्यात्म यात्रा ने उन्हें फिर से हौसला दिखाया और वह आगे बढ़ चली। बाद में उन्हें फिर से गुरुजी की शरण मिली और पूज्य आचार्य महामंडलेश्वर युगपुरुष स्वामी परमानंद जी महाराज के मार्गदर्शन में उनकी आध्यात्मिक यात्रा शुरू हुई। संघर्ष बड़ा था, लेकिन उनका दृढ़ संकल्प मजबूत था। भगवान ने उनकी पग-पग पर कठिन परीक्षा ली, लेकिन उन्होंने हर कठिनाई का निडरता से सामना किया।
दीदी ने भारतीय शास्त्रों और आध्यात्म के गहन अध्ययन से सांसारिक सुख-सुविधाओं का त्याग कर दिया, जिससे वे भारत माता की भावना को साकार कर सकें। वह दृढ़ता से मानती हैं कि हर आत्मा के पास एक दिव्य उद्देश्य है, चाहे वह कितना भी धनी-सम्पन्न क्यों न हो। उन्होंने अपने उद्देश्य को पहचाना और स्नेह की प्रतिमूर्ति बन गईं।
एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेता के रूप में, दीदी माँ का भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म के प्रति गहरा सम्मान है।
साध्वी ऋतम्बरा दीदी एक शक्तिशाली वक्ता हैं जो अपनी सरलता और गहरी अंतर्दृष्टि से लोगों के दिलों को छू लेती हैं। उनके प्रवचन प्रेम और भक्ति की भावना जगाते हैं और श्रोताओं पर गहरा प्रभाव छोड़ जाते हैं।
वह उदाहरण प्रस्तुत करके नेतृत्व करती हैं, न केवल शब्दों के माध्यम से बल्कि अपने आचरण से भी सबक सिखाती हैं। उनकी शिक्षाएँ हिंदू धर्म और उसके मूल्यों का सार दर्शाती हैं। जब वह माँ के आँचल का महत्व समझाती हैं और आज की नव पीढ़ी को हमारी वेशभूषा के बारे में बताती हैं, तो कठोर अनुशासन के साथ उसे प्रमाणित करती हैं।
वह कहती हैं, “तुम क्यों दूसरे देशों की वेशभूषा को अपना सौंदर्य मानती हो? अंगों का प्रदर्शन फैशन नहीं, फुहड़ता है। हमारे देश की स्त्री जब साड़ी पहनकर निकलती है, तो गजगामिनी लगती है। शृंगार करती है, तो देवी का रूप लगती है।” वो कहती हैं। क्यों अपने को सिगरेट के धुएं
और शराब के नशे में खुद को डूबोते हो। ये संस्कार नहीं हमारे…अपनी शक्ति को पहचान, हे भारत की नारी तुम कमजोर नहीं हो, तुम दुर्गा हो, तुम काली हो, सारे देवता छोटे छोटे-छोटे जानवरों की सवारी करते हैं तुम सिंह पर सवार होकर आती हो। वह युवाओं को अपनी शक्ति को पहचानने और अपनी संस्कृति को बचाने के लिए प्रेरित करती हैं। उनके गर्जना भरे शब्द झकझोर कर रख देते हैं। जब उनकी वाणी पर सरस्वती माँ बैठती हैं, तो बिगुल बज उठता है। तब वह कहती हैं, “मुझे कठोर होना पड़ता है क्योंकि मेरे देश की संस्कृति और सभ्यता को बचाना है।”
दीदी मांँ की अनेक कठिन यात्राओं में एक और यात्रा का प्रमाण है। श्रीकृष्ण की लीला स्थली वृन्दावन धाम, इस धार्मिक नगरी में एक अलग ही आकर्षण है। वहांँ भगवान श्रीकृष्ण की पग-पग अनुभूति का एहसास होता है। वहीं पर दीदी मांँ! ने एक भव्य वात्सल्य ग्राम का निर्माण किया है।
इस प्रकल्प के मुख्यद्वार के निकट यशोदा और कृष्ण की एक प्रतिमा है जो वात्सल्य रस को साकार रूप प्रदान करती है। वास्तव में इस अनूठे प्रकल्प के पीछे की सोच अनाथालय की व्यावसायिकता और भावहीनता के स्थान पर समाज के समक्ष एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत करने की अभिलाषा है जो भारत की परिवार की परम्परा को सहेज कर संस्कारित बालक-बालिकाओं का निर्माण करे न कि उनमें हीन भावना का भाव व्याप्त कर उन्हें अपनी परम्परा और संस्कृति छोड़ने पर विवश कर दे।
साध्वी ऋतम्बरा दीदी का जीवन “मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है” कहावत को साकार करता है। उनकी करुणा उन त्यागी हुई महिलाओं और बच्चों तक पहुँचती है, जिन्हें वे अपनी वात्सल्य ग्राम पहल के माध्यम से पालन-पोषण का वातावरण प्रदान करती हैं। वात्सल्य ग्राम में, दीदी माँ ने एक अनोखा परिवार बनाया है, जहाँ अनाथ बच्चों को एक परिवार का माहौल मिलता है। वात्सल्य ग्राम का यह परिवार ही उनका परिवार होता है।
दीदी माँ ने देश के प्रमुख शहरों में हेल्पलाइन सुविधा भी शुरू की है, जिससे बेसहारा नवजात शिशुओं को वात्सल्य ग्राम के स्वयंसेवक अपने संरक्षण में लेकर वृन्दावन पहुँचा देते हैं। उन्होंने अनाथ बच्चों के लिए एक आशा की किरण बनकर काम किया है और उनकी जीवन को बदल दिया है।
उनकी विचारधारा और कार्य किसी भी धर्म, जाति या समुदाय से ऊपर है, और उन्होंने अनाथ बच्चों के प्रति अपनी अद्भुत मातृभावी भावना को दर्शाया है। दीदी माँ के गहरे भाषणों और आध्यात्मिक शक्ति ने उन लोगों पर अमिट छाप छोड़ी है जिन्हें उन्हें सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
दीदी माँ के कुछ वाक्य आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं:
बताओ कौन यहाँ है जिसे प्राणों से प्यार नहीं
मगर जगत में कब किसने लिया मित्र का सहारा नहीं
हर समय खुशहाली में अलग रहना कोई हमसे सीख ले
झंझटों से भाग जाना चाहे जिससे सीख लो
झंझटों में रहकर कोई बचना हमसे सीख ले
आँख गैरों से लगाना बच्चा-बच्चा जानता है
आँख अपने से लगाना कोई हमसे सीख ले
सुख जीते जी बचाने के लिए बैठे हैं
हर समय मर-मर कर बचना कोई हमसे सीख ले
सुख में सुखी दुख में दुखी रहना हर कोई जानते हैं
हर समय परमानन्द में रहना कोई हमसे सीख ले
चींटी से लेकर ब्राह्म तक में चेतना एक उस प्रभु की है
ये मान ले, ये जान ले
सनातन स्वतः सिद्ध है।
दीदी माँ का जीवन और कार्य हमें सिखाता है कि सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर चलकर ही हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
मंजू शर्मा कार्यकारी संपादक