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सरहद और ये पड़ोस — डॉ इंदु भार्गव

 

सरहदें केवल ज़मीन के टुकड़े को बाँटने वाली रेखाएं नहीं होतीं, बल्कि वे दो देशों के बीच के संबंधों, विश्वास और तनाव की भी प्रतीक होती हैं। पड़ोसी देशों के बीच की सरहदें एक ओर जहां शांति, सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का माध्यम बन सकती हैं, वहीं दूसरी ओर यही सीमाएं संघर्ष, युद्ध और असुरक्षा का कारण भी बन जाती हैं।

भारत का भौगोलिक स्थान ऐसा है कि इसकी सीमाएं कई देशों से मिलती हैं – पाकिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे पड़ोसी देश इसके सरहदी पड़ोसी हैं। प्रत्येक देश के साथ भारत के संबंधों की एक अलग कहानी है, जो कभी ऐतिहासिक साझेदारी से बनी है, तो कभी राजनीतिक मतभेदों से प्रभावित हुई है।

पाकिस्तान के साथ हमारे संबंधों में बार-बार तनाव उत्पन्न हुआ है। 1947 के बंटवारे से लेकर कारगिल युद्ध और सीमापार आतंकवाद तक, यह पड़ोसी संबंध शत्रुता की मिसाल बन गया है। वहीं, चीन के साथ भी लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश की सीमा को लेकर विवाद चलता आ रहा है, जो 1962 के युद्ध और हाल की झड़पों में झलकता है।

इसके विपरीत नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जैसे देशों के साथ भारत ने शांतिपूर्ण और सहयोगी रिश्ते बनाए रखे हैं। सांस्कृतिक, धार्मिक और व्यापारिक संबंधों के चलते इन देशों के साथ भारत की सरहदें अपेक्षाकृत शांत और मित्रवत रही हैं।

सरहद पर रहने वाले लोगों का जीवन कठिनाइयों से भरा होता है। वहाँ हर वक्त तनाव की स्थिति बनी रहती है। लेकिन यही लोग अपनी सांस्कृतिक साझेदारी और मानवीय भावनाओं से यह दिखा देते हैं कि सरहदें दिलों को बाँटने वाली नहीं होनी चाहिए।

संक्षिप्त –
सरहदें अगर समझदारी, संवाद और सहयोग के पुल बनें, तो ये पड़ोस एक ताकत बन सकते हैं। लेकिन यदि इन्हें राजनीतिक हितों और दुश्मनी के प्रतीक के रूप में देखा जाए, तो ये सीमाएं सिर्फ ज़मीन ही नहीं, मानवता को भी बाँट देती हैं!!

डॉ इंदु भार्गव!!

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