तीर्थ यात्रा का सुख — सुनीता तिवारी

बहुत दिनों से चाहत थी लेकिन ईश्वर का बुलावा नहीं आया था।
अब प्लान बना यमुनोत्री जाने का
तो हम लोगों ने सारी बुकिंग करा ली और पूरी तैयारी से स्टेशन पहुंच गए।
रात की ट्रेन मिली सोते सोते दिल्ली पहुंचे वहां से सुबह टैक्सी लेकर शाम 5 बजे हरिद्वार पहुंचे।
रात्रि विश्राम के बाद प्रातःकाल में गंगा स्नान किया।
मनसा देवी और चंडी देवी के दर्शन से बहुत आनंद प्राप्त हुआ।
शाम को बाजार घूमा बहुत कुछ खरीदा और बाहर ही भोजन करके होटल आ कर सो गए।
सुबह हम दोनों मंसूरी घूमते हुए बड़कोट पहुंचे।
मंसूरी में केम्पटी फाल का नजारा बहुत ही मन मोहक था।
बड़कोट रात्रि विश्राम के बाद यमुनोत्री में बहुत ही कठिन चढ़ाई चढ़ना थी।
चार किलोमीटर चढ़ने के बाद पैरों ने जबाब दे दिया।
चक्कर आने लगा फिर
हम लोगों ने घोड़े ले लिए,रास्ते में पानी गिरने लगा।
मई माह में भी ठंड लगने लगी जैसे तैसे खड़ी चढ़ाई चढ़ कर घोड़े ने ऊपर पहुंचा दिया।
घोड़े और पैदल चलने वाले सभी के
लिए एक ही रास्ता था और बहुत ज्यादा कीचड़ था।
चढ़ाई में चढ़ते समय नीचे देखते हुए बहुत डर लगता है।
अथाह भीड़ में मंदिर पहुंच कर दर्शन किये।
नदी में स्नान किया और भोजन किया
तथा वापस आने के लिये घोड़े खोजे।
लगभग एक घंटे में मंदिर के नीचे आ गए।
रात्रि विश्राम के बाद सुबह हरिद्वार के लिए निकल गए वहाँ से ट्रेन से भोपाल वापस आये।
आज तक यूं लगता है कि यमुनोत्री दोबारा जाय।
बहुत ही सुंदर और पवित्र जगह हैं।
तीर्थ यात्रा का सुख अनुपम है जिसको महसूस किया जा सकता है।
सुनीता तिवारी