उत्पीड़न — बबिता शर्मा

आज के आधुनिक युग में नजरे उठा कर देखें तो उत्पीड़न ही उत्पीड़न सर उठाए दिख रहा होगा ।इस दौर में कोई भी उत्पीड़न से अछूता नहीं है चाहे वो शारीरिक,मानसिक या फिर आर्थिक रूप से ही क्यों न हो । मगर वह इस का ग्रास अवश्य बन रहा है । मानव ही नहीं हर योनि का जीव इससे पीड़ित है ।
यदि गहन रूप से मनन किया जाय तो यह भविष्य के लिए एक विशाल खतरा साबित होगा ।
समाज में किसी भी श्रेणी का व्यक्ति या जीव क्यों ना हो वह इसका शिकार बन रहा है । हर बड़ा वर्ग अपने से निम्न वर्ग को ग्रस रहा है जबकि वह इस बात से अनभिज्ञ कि वह भी किसी न किसी दिन उत्पीड़न का शिकार अवश्य होगा । अतः इसके उपचार हेतु यदि स्वयं की नीतियों में परिवर्तन न किया गया तो धरा से इंसानियत का नामों निशान ही मिट जाएगा ।मानवता प्रेम के लिए तरस जाएगी, एकजुटता की कमी चहुं ओर प्रत्यक्ष नजर आएगी जिसका परिणाम होगा _नरसंहार की बर्बरता अधिपत्य।
चहुं ओर मौत का मंजर ,भय ,त्राहि _त्राहि की चीख
जिसे सुनने और देखने एवं सहने की क्षमता किसी में न होगी या फिर यूं कहिए कि होगा दुनिया का अंत काल जिसमें कोई कंघा देने वाला भी शेष न होगा ।
अतः अभी से सचेत होना होगा अपने थोड़े स्वार्थ , लोभ को लेकर अपनी इंसानियत को न गिरने दे । ऐसे बीजों का रोपण करें जिसकी छाया आपके भविष्य के लिए फलदाई ओर सुखदाई हो ।
एक कदम शांति की ओर
बबिता शर्मा