वैश्यालय पर लेख — अनामिका “निधि”

प्रस्तावना
वैश्यालय, जिसे आम बोलचाल की भाषा में कोठा, देह व्यापार केंद्र या रेड लाइट एरिया भी कहा जाता है, समाज का एक ऐसा पहलू है जिसे अक्सर नजरअंदाज या कलंकित किया जाता है। यह स्थान उन महिलाओं (और कभी-कभी पुरुषों) का केंद्र होता है जो आजीविका के लिए देह व्यापार करती हैं। हालांकि समाज इसे हेय दृष्टि से देखता है, परंतु यह एक ऐसी सच्चाई है जिसे नकारा नहीं जा सकता।
इतिहास और उत्पत्ति
देह व्यापार कोई नया विषय नहीं है। यह प्राचीन सभ्यताओं जैसे भारत, यूनान, मिस्र और चीन में भी मौजूद रहा है। भारत में ‘नर्तकी’, ‘गणिका’ और ‘देवदासी’ जैसी व्यवस्थाएं भी एक प्रकार के नियंत्रित वैश्यालय का ही रूप थीं। यह पेशा समय के साथ सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक कारणों से विकसित होता गया।
वैश्यालयों की सामाजिक स्थिति
आज भी भारत के कई शहरों में वैश्यालय मौजूद हैं, जैसे मुंबई का कमाठीपुरा, कोलकाता का सोनागाछी आदि। इन स्थानों पर काम करने वाली महिलाओं की सामाजिक स्थिति बहुत दयनीय होती है। वे गरीबी, तस्करी, पारिवारिक मजबूरी या धोखे का शिकार होकर इस कार्य में आती हैं। इन्हें समाज की मुख्यधारा से बहिष्कृत कर दिया जाता है और इनकी संतानें भी भेदभाव का सामना करती हैं।
कानूनी स्थिति
भारत में वेश्यावृत्ति पूरी तरह से अवैध नहीं है, लेकिन इससे संबंधित कई गतिविधियाँ जैसे सार्वजनिक स्थान पर solicitation, दलाली, तस्करी आदि गैरकानूनी हैं। इसके बावजूद कानून का पालन कराना मुश्किल होता है और कई बार पुलिस और दलालों की मिलीभगत से शोषण बढ़ता है।
समस्या और समाधान
वैश्यालय केवल नैतिक या सामाजिक समस्या नहीं है, यह एक जटिल मानवाधिकार, आर्थिक और स्वास्थ्य का भी मुद्दा है। इन महिलाओं को कानूनी सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा और पुनर्वास की आवश्यकता है। सरकार और स्वयंसेवी संस्थाएं इस दिशा में कार्य कर रही हैं, लेकिन समाज की मानसिकता में परिवर्तन लाना सबसे महत्वपूर्ण है।
उपसंहार
वैश्यालय और उसमें रहने वाले लोगों के प्रति हमारी सोच में बदलाव जरूरी है। इन महिलाओं को सम्मान और अधिकारों के साथ जीने का हक है। यदि हम समाज को वास्तव में सभ्य बनाना चाहते हैं, तो हमें इनकी पीड़ा को समझते हुए इन्हें सहारा देना होगा, तिरस्कार नहीं।
अनामिका “निधि”