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वट सावित्री पूजा — कविता साव

हिन्दु धर्म में बरगद के पेड़ की पूजा वट सावित्री के मौके पर बड़ी खास तौर से की जाती है।हमारी धार्मिक मान्यता के अनुसार इस वृक्ष पर ब्रह्म,विष्णु और महेश का निवास होता है।इस दिन सुहागन महिलाएं पूरी आस्था और श्रद्धा से वट वृक्ष की परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत पेड़ में लपेटती है जिसे पति की लंबी उम्र और अटूट दाम्पत्य जीवन का प्रतीक माना जाता है।
या त्यौहार प्रति वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या को सुहागन महिलाएं पूरी श्रद्धा के साथ निर्जला उपवास करती हैं।यह व्रत मात्र धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि नारी शक्ति के अटूट प्रेम का प्रतीक भी है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार ,सावित्री एक पतिव्रता स्त्री थी। सत्यवान अल्पायु थे।जब यमराज उनके प्राण लेने आते हैं तो सावित्री उनके पीछे चल देती है और अपने तपोबल से केवल पति का प्राण ही वापस नहीं लाती ,बल्कि सौ पुत्रों का वरदान भी प्राप्त करती है।
ये चमत्कार एक वट वृक्ष के नीचे होता है जिस कारण से वट वृक्ष की पूजा बड़ी श्रद्धा के साथ की जाती है।इस वृक्ष की शाखा को सावित्री मानकर स्त्रियां पूजन अर्चन करती हैं।
इस दिन स्त्रियां स्नान ध्यान के बाद सोलह श्रृंगार करके अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती है एवं पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करती हैं। ऐसा माना जाता है कि वट वृक्ष जीवन की स्थिरता और दीर्घायु का प्रतीक है। सुहागिनें अपने दाम्पत्य के अटूट बंधन को संयमित रखने के लिए कच्चा सूत बरगद के पेड़ में सात फेरे लेते हुए बांधती है ताकि उसका अपने पति के साथ सात जन्मों का बंधन अटूट रहे।
कविता साव
पश्चिम बंगाल

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