यादों के साए में माता-पिता का स्नेह बंधन — डॉ इंदु भार्गव

बचपन की धुंधली यादों में जब झाँकते हैं, तो सबसे पहले जो चेहरों की झलक उभरती है, वो होती है माँ और पिता की। उन दोनों की आँखों में समाया असीम स्नेह, हाथों की पकड की मजबुती, और जीवन की पहली पाठशाला का हर पाठ—सब कुछ जैसे आज भी मन के किसी कोने में सुरक्षित पड़ा है!
माँ की ममता और पिता की साया, ये दो भावनाएँ जीवन में उस नींव की तरह होती हैं, जिस पर पूरा व्यक्तित्व खड़ा होता है। माँ की गोद में सिर रखते ही जैसे सारी दुनिया की चिंताएँ दूर हो जाती थीं। उसका स्पर्श एक ऐसी दवा था, जो हर दर्द को पलभर में भुला देता। वहीं पिता की उँगली पकड़कर चलना, गिरते-संभलते सीखना, जीवन की राह पर चलने का पहला सबक था।
याद है, जब हम छोटे थे, तो माँ अपने हिस्से की मिठाई भी बच्चों के लिए बचाकर रखती थी, और पिता दिनभर की थकान के बाद भी मुस्कुराकर हमारे लिए समय निकालते थे। जब कभी हम डाँट खाते थे, तो माँ की आँखें नम हो जाती थीं, और जब परीक्षा में अच्छे अंक आते थे, तो पिता की आँखों में गर्व चमक उठता था।
समय बीतता गया, हम बड़े होते गए, ज़िम्मेदारियाँ बढ़ती गईं। लेकिन माता-पिता का वो स्नेहिल बंधन, वो निस्वार्थ प्रेम कभी नहीं बदला। उन्होंने अपने सपनों को हमारे सपनों में ढाल दिया। कभी उन्होंने हमारे आगे अपने आंसू नहीं दिखाए, पर हर बार हमारे दुःख में चुपचाप रोए।
आज जब यादों के गलियारों में चलते हैं, तो वो छोटी-छोटी बातें भी अमूल्य लगती हैं—माँ का सुबह की पूजा के बाद माथे पर चंदन लगाना, पिता का स्कूल के पहले दिन कंधे पर बिठाकर ले जाना, रात को कहानी सुनाकर सुलाना, और परीक्षा के दिन बिना कुछ कहे प्रार्थना करना।
माता-पिता का स्नेह वास्तव में एक ऐसा बंधन है, जो शब्दों में बाँधा नहीं जा सकता। यह जीवन भर साथ चलता है—यादों में, संस्कारों में और हर उस निर्णय में, जो हम आज लेते हैं।
– क्योंकि यादों के साए में, उनका प्यार हमेशा ज़िंदा रहता है!अपने जीवन की किताब के पन्नों से लिखी यादे शेष हैं!!
डॉ इंदु भार्गव जयपुर!!