5 जून विश्व पर्यावरण दिवस — डॉ सरिता चौहान की कलम से

यह दिवस अत्यंत महत्वपूर्ण दिवस है क्योंकि पर्यावरण को सुधारने हेतु इस दिन पूरा विश्व सामने आई चुनौतियों को हल करने का समाधान ढूंढता है। पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है-परी + आवरण,अर्थात जो हमें चारों तरफ से घेरे रहती है। हम सभी जानते हैं की प्रकृति से हम हैं, प्रकृति हमारी संरक्षिका है, हमारी मां है, इसलिए प्रकृति को हमेशा हरा भरा रखना, सुसज्जित रखना कितना आवश्यक है। प्रकृति की सुंदरता ही हमारी सुंदरता है। अगर हमारी प्रकृति सुंदर है तो हम सुंदर हैं–चाहे बात अतः प्रकृति की हो या बाह्य प्रकृति की। जब हम अपनी अतः प्रकृति को सुंदर बनाए रखेंगे तो हमारी बाह्य प्रकृति भी अवश्य सुंदर होगी। आप बात को समझ सकते हैं यह तो मात्र एक संकेत है। अगर हम बात करें बाय प्रकृति की तो हम प्रकृति के साथ अनावश्यक छेड़छाड़ करेंगे तो कहीं से सुरक्षित नहीं रहेंगे। हम अपनी प्रकृति को जितना ही समृद्ध बनाएंगे उतना ही सुखी रहेंगे। पूरे विश्व में एक साथ प्रतिवर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करना है। इस बार साल 2025 की थीम है “प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करना;”जो कि इतना आसान नहीं है। इसके लिए हम सभी को मिलकर प्रयास करना होगा। इस थीम को सफल बनाने के लिए जन जागरूकता अति आवश्यक है। प्लास्टिक से होने वाली सभी प्रकार के हानियों के बारे में लोगों को बताना होगा ।सिर्फ कागज पर नियम बनाने से सफलता संभव नहीं। केवल सरकारी कार्यालयों में पेड़ लगाकर फोटो खिंचवा लेने से कुछ नहीं होगा ।इसके लिए जन जागरण आवश्यक है इसीलिए हमारे शास्त्रों में जनता को जनार्दन कहा गया है ।जब जनता जनार्दन जागेगी तब हरियाली अवश्य आएगी और जहां हरियाली रहती है वहां खुशहाली स्वमेव आ जाती है। अगर हम यहां ठान लें कि” पेड़ लगाओ प्रदूषण घटाओ “,तो यह सूरज की लाली से लेकर धरती की हरियाली तक का उपक्रम होगा । पर्यावरण दिवस पर आप अपने घरों में पौधे या आसपास पेड़ लगाएं आपके घरों को पेड़ की छांव और ताजी हवा मिलेगी।
भारत दुनिया के बड़े देशों में से एक है। धरती को बचाना और पेड़ों का संरक्षण करना एवं प्रकृति के साथ सामंजस्य पूर्ण जीवन भारतीय संस्कृति की एक अटूट परंपरा है जिसका निर्वहन हमारी लोकगीतों में है __
1-निमिया की डाढ़ी मैया लवेली हिंडोलवा ।
2-बाबा निमिया की डाढ़ी जानि कटिया ।
3-अमवा की डरिया पर बोले कोइलरिया ।
4-झूला झूलें कदम्बा की डारी ओ मोहन कृष्ण मुरारी ।
5-पूंजिलें ने वट वृक्ष मोहि दीहैं अमर सौभाग्य हो।
6-बाबा दुअरवा एक पेड़ पीपल।
इत्यादि।
इस प्रकार हम स्वयंभू शाश्वत और सनातन प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने के बजाय उसके प्रति जागरूक एवं संवेदनशील बनें ।इसमें छिपे हुए गूढ़ रहस्यों को जानें । इसी में हमारी भलाई है ।इस संदर्भ में अगर हम धर्म और पर्यावरण को आत्मसात करके देखें तो नीम ,आम, पीपल ,पाकड़ ,बरगद और शमी इत्यादि अनेक ऐसे वृक्ष हैं जिनकी पूजा का प्रावधान हमारे धर्म में है ।धर्म और आध्यात्मिकता से जुड़े ऐसे अनेकों वृक्ष आयुर्वेद में भी कारगर साबित हैं ।अगर हम बात करें पीपल और बरगद के वृक्ष जो की अत्यधिक ऑक्सीजन देने वाले वृक्ष हैं धार्मिक प्रभावों के कारण अत्यधिक संरक्षित हैं। हमारे धर्म और संस्कृति से जुड़े ऐसे अनेकों वृक्ष हैं जो जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण रखते हैं और बे मौसम बारिश को रोकने में भी मददगार हैं ।अतः इन वृक्षों को संरक्षित करना हमारा परम पुनीत कर्तव्य होना चाहिए ।”प्रकृति संरक्षित तो मानव जीवन सुरक्षित “इहलिए हम सब मिलकर यह संकल्प लें “।यह वसुंधरा हम सब की मां ।मां होती है प्राण से प्यारी, मां होती है प्राण से प्यारी।।
अंत में यह कहना समीचीन ही होगा कि –पर्यावरण स्वच्छ व शुद्ध होगा पेड़ लगाने से।
नहीं जाएंगी यह विसंगतियां केवल दिवस मनाने से ।।
डॉ सरिता चौहान
प्रवक्ता हिंदी ए डी राजकीय कन्या इंटर कॉलेज गोरखपुर उत्तर प्रदेश।