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बच्चे अब बड़े हो गए हैं — रिंकी माथुर

बच्चे बड़े हो गए हैं कभी मासूम थे भोले थे लेकिन अब समझदार हो गए हैं कहते हैं मां तुम भी ना कुछ समझती नहीं हो बार-बार फोन करके हमें सोने भी नहीं देती हो हम अपने तरीके से रहकर खुश है अरे हम अब बच्चे थोड़ी हैं जो हरदम पूछती रहती हो कि खाना खाया क्या खाया कहां गया कब आया,
आप भी अपनी जिंदगी में खुश रहा करो और हमें भी रहने दो लेकिन मां के दिल को कौन समझाए यही तो मुश्किल है जानती है कि बच्चे बड़े हो गए हैं लेकिन मन मानता नहीं है घर से निकलते ही कितनी हिदायते दे देती हू,
धूप में मत घूमना बार-बार पानी पीते रहना गर्मी बहुत है समय पर खाना खाना समय पर सोना और भी न जाने कितनी ही हिदायते जैसे कि हर बार पहली हो।
मां हूं ना शायद यह बच्चे नहीं समझेंगे जब वह मां-बाप बनेंगे तब शायद समझ में आए बच्चे बड़े हो गए हैं अपनी फैसले खुद लेने लगे है।
कभी जो अंधेरे में भी अपनी मां की उंगली थामे चलते थे,
मेले में पिता के कंधे पर चढ़कर झूला देखते थे लेकिन अब बच्चे बड़े हो गए हैं दोस्तों से भी छुपाते हैं यह मेरे माता-पिता है कहने मे भी लजाते है।
यह कैसी हवा चली है की पुरानी सभ्यता संस्कृति को भूलकर आधुनिकता की दौड़ में दौड़े जा रहे हैं बच्चे बड़े हो गए हैं
रिंकी माथुर अजमेर

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