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आलेख – पर्यावरण संरक्षण – नरेश चंद्र उनियाल,

 

यह अत्यंत खेद का विषय है कि जो पृथ्वी हम सबके लिए जीवनदायिनी थी, वही पृथ्वी आज स्वयं के बर्चस्व के लिए लड़ाई लड़ रही है। हम इंसानों ने इस पवित्र धरती माँ की गोद के साथ इतनी छेड़छाड़ कर दी है कि हम सबकी संरक्षिका धरती माँ का आँचल छिन्न भिन्न हो गया है।
हम सबके लिए यह धरिणी प्रकृति के द्वारा प्रदत एक अनमोल उपहार है, जो कि संपूर्ण मानव जाति एवं प्राणि जगत का एकमात्र महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग है। इसके पर्यावरण को सुरक्षित रखना भी हम सबकी ही जिम्मेदारी है।
प्रकृति द्वारा प्रदत्त अमूल्य भौतिक तत्वों पेड़-पौधे, पानी, हवा और अनगिनत अन्य महत्वपूर्ण तत्वों से मिलकर के इस वसुधा का निर्माण होता है। ये तत्व मानव जाति के अस्तित्व के लिए अत्यंत आवश्यक अवयव हैं, और मानव अपनी अवश्यकताओं के लिए समय समय पर इनका दोहन करता रहता है। अगर मनुष्य समाज प्रकृति के नियमों का भलीभांति अनुसरण करें तो उसको कभी भी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की कमी नहीं रहेगी। मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हवा-पानी, पेड़ -पौधे और जीव-जंतु आदि पर निर्भर करता है और बहुत पहले से ही इन चीजों का दोहन करता हुआ आ रहा है।
वर्तमान युग औद्योगीकरण और मशीनीकरण का युग है, जहां आज हर काम को सरल और सुगम बनाने के लिए मशीनों का प्रयोग होता है वहीं पृथ्वी के संरक्षण का उल्लंघन भी हो रहा है | आज न तो पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान दिया जा रहा है और नहीं प्रकृति के द्वारा दिए गए अमूल्य तत्वों का सही ढंग से उपयोग हो रहा है, इसका नतीजा है कि प्रकृति कई आपदाओं का शिकार हो रही है। सन् 2013 की केदारनाथ की आपदा कहती है कि ‘ प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम् ।’ आज के समय में मनुष्य औद्योगिकरण और नगरीकरण के माहौल में इस प्रकार से गुम हो गया है कि अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए वह प्रकृति का अत्यधिक दोहन कर रहा है और पर्यावरण को भी असंतुलित कर रहा है, परिणाम स्वरूप आज मनुष्य को बाढ़ प्रदूषण सूखा आदि आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। अगर मनुष्य प्रकृति द्वारा दिए गए अमूल्य तत्वों की श्रृंखला का समुचित ढंग से और सुरक्षित ढंग से उपयोग करे, तो पर्यावरण एवं धरती को संरक्षित, पल्लवित और पुष्पित रखा जा सकता है।
आपने देखा होगा ज़ब वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने सारे विश्व में अपना पांव फैलाया हुआ था, जिसके चलते भारत में भी लॉकडाउन का सहारा लेना पड़ा। परिणाम स्वरूप सड़कों पर गाड़ियां नहीं, बाजारों में मनुष्य नहीं… सारे लोग अपने घरों में बंद। इस बात का हमारी पृथ्वी पर बहुत बहुत असर पड़ा। पृथ्वी से ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण में आश्चर्यजनक रूप से कमी आई, फल स्वरुप नदियां एकदम स्वच्छ, और शहर एकदम साफ। कहने का तात्पर्य है कि अपने धरती को बिगाड़ने में मनुष्य एक बहुत बड़ा कारक होता है।
विकास और औद्योगीकरण के नाम पर पृथ्वी पर बहुत अत्याचार हो रहा है इसका नतीजा है कि धरती में प्रदूषण, अशुद्ध हवा, पानी की कमी और बीमारियों की भरमार दिन-प्रतिदिन गंभीर चर्चा का विषय बना हुआ है। अर्थात् मनुष्य न तो स्वयं को बचा पा रहा है और नहीं प्रकृति को। कहने का मतलब है कि आज जहां मानव समाज विलासिता पूर्ण जीवन जीने की इच्छा में प्रकृति का अंधाधुंध दोहन कर रहा है वही अज्ञानता बस अपनी जान का दुश्मन भी बना हुआ है।
पर्यावरण संरक्षण में पेड़ पौधों का सर्वाधिक महत्व है परंतु जिस तरीके से आज औद्योगीकरण के युग में पेड़ों का अंधाधुंध कटान हो रहा है, वहीं आज समाजसेवी संस्थाओं को जागृत और प्रोत्साहित करके वृक्षारोपण को एक अनिवार्य गतिविधि बना दिया जाना चाहिए, ताकि मनुष्य अपनी विलासिताओं के लिए पर्यावरण और पृथ्वी का दुरुपयोग न कर सके |

“नंगी धरती करे पुकार,
वृक्ष लगाकर करो श्रृंगार !
पर्वत करते चीख-पुकार,
पुत्र हो एक तो पेड़ हजार !!”

सरकार को भी चाहिए कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति जो समर्पित संस्थाएं हैं, मनुष्य हैं.. उनको भरपूर पारितोषिक और सम्मान दे करके उन्हें सम्मानित करना चाहिए ताकि अन्य लोग भी पर्यावरण और पृथ्वी के संरक्षण के लिए प्रेरित और जागरूक हो सकें।
अंततः जब मनुष्य पर्यावरण के महत्व को समझ लेगा तो वह स्वयं अपने जीवन को सरल और सुरक्षित बना करके रख सकता है, यही उसके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक भी है।

– नरेश चंद्र उनियाल,
पौड़ी -गढ़वाल, उत्तराखण्ड।

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