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आत्मकथा : कलम से मेरी यारी – राजेश कुमार ‘राज’

 

यह बात वर्ष १९७६ की है. उस समय में डॉ. हरिराम आर्य इन्टर कॉलेज, मायापुर-हरिद्वार में ११वीं कक्षा का विद्यार्थी था. अध्ययन के अतिरिक्त तब मैं अपने गुरु एवं मार्गदर्शक स्व. परमजीत सिंह जी के नेतृत्व में विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में संलग्न था. इसी दौरान मेरे अन्दर कविता लिखने की रूचि भी जागृत हुई. मैंने कुछ बचकाना सी कवितायेँ लिखी भी जो नैतिकता और उपदेशों से भरी थीं. काव्य सर्जन के क्षेत्र में मेरा कोई गुरु तो था नहीं. जैसा मन करता, लिखता गया. मेरे मित्रवृत्त में मेरी कविताओं की काफी सराहना होती थी. यहाँ तक कि मेरे कुछ मित्रों के माता-पिता ने मुझे अपने घर आमंत्रित कर लिखते रहने की सलाह भी दी. उस वक्त मुझे छन्द शास्त्र और मात्रा आदि का ज्ञान नहीं था और ना ही ग़ज़ल में बहर, काफिया और रदीफ़ क्या होते हैं, पता था. हाँ मुझे तुकांत करना आता था. मेरी एक ग़ज़ल, जो अब मुझे ठीक से याद भी नहीं, ‘फ़िल्मी दुनियां’ पत्रिका में छपी भी थी. अब जाकर पता चला कि वह ग़ज़ल तो थी ही नहीं क्योंकि उसमें बहर और काफिया तो थे ही नहीं परन्तु रदीफ़ सहज रूप से शामिल था. मुझ में हरदम कुछ न कुछ नया करते रहने की ललक थी तो मैं काव्य सर्जन को विराम देकर लड़कियों के लिए मुफ्त कोचिंग क्लास, गरीबों के लिए मुफ्त होम्योपैथिक क्लिनिक, इत्यादि सामाजिक कार्यों की तरफ उन्मुख हो गया. इन सब गतिविधियों को संचालित करने हेतु अपने गुरु स्वo परमजीत सिंह जी के मार्गदर्शन में मैंने ‘समाज कल्याण परिषद्’ नामक एक स्वैच्छिक संस्था का गठन भी कर डाला था. यह सब मैं १७ से १८ वर्ष की आयु में कर रहा था.

इन सब गतिविधियों को संचालित करते-करते मैंने सन १९७९ मेंने कला स्नातक की डिग्री हासिल कर ली. तत्पश्चात मैं पत्रकारिता की ओर उन्मुख हुआ. पत्रकारिता के क्षेत्र में मेरे गुरु आदरणीय श्री महेश चन्द्र ‘पथिक’ थे. उन्होंने मुझे अपने हिंदी साप्ताहिक ‘परिचक्र’ में सह-संपादक पद पर कार्य करने का सुअवसर प्रदान किया. उनके मार्गदर्शन में मैं पत्रकारिता को गहन रूप में समझ पाया तथा मेरी लेखनी को धार मिली. परिणाम स्वरुप बाद में मुझे हिंदी दैनिक ‘बद्री विशाल’ में समाचार-संपादक के रूप में कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ. दैनिक ‘बद्री विशाल’ में माह जनवरी, १९८४ तक मैं समाचार संपादन का कार्य करता रहा. तत्पश्चात माह जनवरी, १९८४ में ही मैं भारत सरकार की सेवा में संलग्न हो गया. सरकारी कामकाज के बोझ तले मैं लेखन कार्य को निरंतरता पूर्वक नहीं कर पाया. सेवानिवृत्ति के पाँच वर्ष पश्चात गत वर्ष २०२४ के माह मई में अचानक माँ सरस्वती ने पुनः अपना वरद हस्त मेरे सिर पर रखा और मैंने कविता लिखना पुनः प्रारम्भ कर दिया. अब तक चार साझा काव्य संकलनों; अटल काव्यांजलि- २०२४, हँसगुल्ले, माँ तुझे सलाम तथा कविता अव्याहत; में मेरी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं. प्रेरणा दर्पण साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच और सहित्य२४ के तत्वाधान में आयोजित काव्य गोष्ठियों तथा कतिपय ऑनलाइन पटलों पर भी मैं अपना काव्य पाठ प्रस्तुत कर चुका हूँ. नजर इंडिया24 के ऑनलाइन पटल पर मेरी समसामयिक कवितायेँ प्रकाशित होती रहती हैं. वर्तमान में मैं राजश्री साहित्य अकादमी, नव कलमकारों की दुनिया, काव्य मंच-मेघदूत, शब्दसिन्धु अंतर्मन, सहकार जगत, विश्व हिंदी सृजन सागर मंच, सुवासितम, साहित्य संगम, साहित्य24, कशिश-ऐ-लफ़्ज कलम की जादूगरी, प्रेरणा दर्पण साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच इत्यादि मंचों से जुड़कर अपनी काव्य यात्रा पर अग्रसर हूँ.

सम्प्रति: सेवानिवृत्त राजपत्रित अधिकारी, भारत सरकार.

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