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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस – शिक्षाविद एवं अधिवक्ता दीपक शर्मा

 

21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पूरे विश्व में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह दिन योग की महत्ता, इसके शारीरिक, मानसिक और आत्मिक लाभों के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित है। यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने का प्रतीक बन चुका है।

‘योग’ शब्द संस्कृत के ‘युज’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है – ‘जोड़ना’ या ‘एकीकरण करना’। योग शरीर, मन और आत्मा को एक संतुलन में लाने की प्रक्रिया है। यह केवल शारीरिक क्रियाओं या व्यायामों तक सीमित नहीं है, बल्कि एक जीवनशैली है, जो व्यक्ति को संयम, ध्यान, आत्मनियंत्रण और अंतर्मुखता की ओर ले जाती है।

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की शुरुआत की नींव संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 27 सितंबर 2014 को दिए गए प्रस्ताव में रखी गई थी। उन्होंने योग को मानवता के लिए अमूल्य उपहार बताया। इसके परिणामस्वरूप 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ घोषित किया। 21 जून को इसलिए चुना गया क्योंकि यह वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है और योग के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है
योग से शरीर को लचीलापन, ऊर्जा, और रोगों से लड़ने की शक्ति मिलती है।
मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद से मुक्ति मिलती है।
आध्यात्मिक लाभ मिलता है ,आत्मा और ब्रह्म के बीच संबंध को महसूस किया जा सकता है।
जीवनशैली में सुधार: संयमित भोजन, नींद, व्यवहार और सोच की दिशा में परिवर्तन आता है।

भगवान श्री कृष्ण और योग
भगवान श्रीकृष्ण को योगेश्वर कहा गया है – अर्थात योग के स्वामी। भगवद गीता में उन्होंने अर्जुन को युद्ध भूमि में जो उपदेश दिए, वे योग की विभिन्न शाखाओं पर आधारित हैं। गीता स्वयं एक योगशास्त्र है।

भगवद गीता में योग की प्रमुख शिक्षाएं:
कर्म योग (कार्य का योग):
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म में लीन रहने का उपदेश दिया। उन्होंने कहा कि मनुष्य को कर्म करते रहना चाहिए, फल की चिंता किए बिना। यही ‘कर्म योग’ है।
भक्ति योग (प्रेम व समर्पण का योग):
“मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।”
भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि पूर्ण प्रेम और समर्पण के साथ जो उनकी भक्ति करता है, वह परम शांति को प्राप्त करता है।
ज्ञान योग (बुद्धि और विवेक का योग):
“ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः।”
उन्होंने ज्ञान को अंधकार मिटाने वाला दीप बताया और कहा कि विवेक के द्वारा आत्मा का साक्षात्कार किया जा सकता है।
राज योग (ध्यान और आत्म-संयम का योग):
“योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।”
ध्यान और संयम के द्वारा मन की चंचलता को शांत कर व्यक्ति ब्रह्म की प्राप्ति कर सकता है।

योग केवल व्यायाम नहीं, बल्कि एक जीवन जीने की कला है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के माध्यम से संसार को बताया कि योग के बिना न आत्मा की शांति संभव है, न समाज का कल्याण। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस न केवल भारतीय संस्कृति की ध्वजा है, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए एक उज्जवल मार्गदर्शक है। आइए, इस योग दिवस पर हम सब संकल्प लें कि योग को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाएंगे और इसके लाभों को जन-जन तक पहुँचाएंगे।
क़लम से –
शिक्षाविद एवं अधिवक्ता
दीपक शर्मा

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