बेटा लिखते रहना — ललिता भोला

जी हां पापा की दी हुई सीख के कारण उस दिन से मेरी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई !कविता लेखन ने दिलाई पहचान !
पिता गौरव है अभिमान है, हम संतानों की जान है !
मां की माथे की बिंदियां, चेहरे की मुस्कान है !
घर को व्यवस्थित, अनुशासित, खुशहाली मिली उनकी छाँव में ,
वट वृक्ष सा हृदय पटल, भोलेनाथ जिनका नाम है!!
बात गर्मी की छुट्टियों की है मैं पीहर गई थी पापा दोपहर में आराम करते थे शाम को वापस अस्पताल जाते थे!
रोज के दिनचर्या अनुसार पापा खाना खाने के बाद विश्राम कर रहे थे !मैं वहीं बैठे बैठे दो कविता लिख दी वह भी पतिदेव के ऊपर लिखे गए थे ,लिखने के बाद मैं उसे दुहरा रही थी इतने में पापा ने आवाज लगाई क्या पढ़ रही है मुझे भी सुनाओ ! चूंकि कविता लिखी वो भी पति के उपर ,पापा की आवाज सुन कर मानो सुन्न हो गई काटो तो खून नही ! पापा ने फिर से कहा सुनाओ उनकी बातों को काटना नही आता था उनकी आज्ञा पालन हम सभी भाई बहन करते थे!
मैं बोली पापा दो कविता है सुनाती हूं! फिर क्या एक ही सांस में दोनों कविता पढ़ गयी ! काफी देर चुप रहे पापा तो मुझसे रहा नही गया मैंने पूछ ही लिया… कैसी लगी कविता आपको ? पापा ने कहा क्यों पूछ रही हो? इसपर मैंने जवाब दिया मैंने लिखा है इसलिए पूछा!
इतना सुनते ही पापा उठकर बैठ गये क्या तुमने लिखा है?? इसमें इतना आश्चर्य की क्या बात है इतना अच्छा लिखा है क्या? पापा खुशी से इतना बोल पाये …बेटा लिखते रहना कभी लिखना मत छोड़ना! इतना कहने के बाद उन्होंने मुझे अपनी लिखी डायरी दिखाई मुझे भी आश्चर्य हुआ पापा भी लिखते हैं!
उस दिन के बाद कलम कभी नही रूकी ! आज ओनलाइन ऑफलाइन कार्यक्रम के माध्यम से अनेकों साहित्यकारों कवियों से जुड़ने का मौका मिला और मिली मुझे पहचान! अनेक पत्र-पत्रिकाओं में दोहे छंद आलेख प्रकाशित हुआ है!
हमेशा की तरह आज भी पापा की बात “बेटा लिखते रहना” कानों में गुंजती है और मुझे लिखने के लिए प्रेरित करती है!
ललिता भोला जयपुर राजस्थान
7725927745