Uncategorized

डिजिटल युग में सामाजिक रिश्तों का बदलता स्वरूप — प्रतिमा पाठक

तकनीक हमें जोड़ती है, लेकिन रिश्तों को जीवंत बनाए रखने के लिए दिल से जुड़ना जरूरी है।

 

आज का युग तकनीकी क्रांति का युग है। मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया जैसे डिजिटल साधनों ने हमारे जीवन में गहरी पैठ बना ली है। इन साधनों ने न केवल हमारे कार्य करने के तरीके को बदला है, बल्कि हमारे सामाजिक रिश्तों के स्वरूप को भी नया आकार दिया है।

जहाँ पहले रिश्तों की नींव मुलाकातों, संवादों और आपसी सहभागिता पर टिकी होती थी, वहीं आज वर्चुअल दुनिया ने इसे स्क्रीन और मैसेज तक सीमित कर दिया है। पहले परिवार के साथ बैठकर बातचीत करना, मित्रों के साथ घंटों समय बिताना, और समाज में सक्रिय सहभागिता एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी। अब यह संवाद व्हाट्सएप के मैसेज, इंस्टाग्राम की स्टोरीज और फेसबुक पोस्ट पर प्रतिक्रियाओं तक सीमित हो गया है।

डिजिटल साधनों का प्रभाव द्वि-धारी तलवार की भांति है। एक ओर इसने दूरियों को मिटाकर लोगों को जोड़ने का अद्भुत कार्य किया है, तो दूसरी ओर वास्तविक मानवीय संपर्क और संवेदनाओं को कम कर दिया है। अब कई बार एक ही घर में रहकर भी परिवार के सदस्य अलग-अलग कमरों में बैठकर मोबाइल स्क्रीन में डूबे रहते हैं। बच्चों का बचपन भी अब खेल के मैदान से हटकर वर्चुअल गेम्स तक सिमट गया है।

मित्रता अब ‘लाइक्स’ और ‘कमेन्ट्स’ की संख्या से आंकी जाने लगी है। भावनाओं की गहराई अब ‘इमोजी’ में बदल गई है। इस परिवर्तन ने रिश्तों में वह गर्माहट कम कर दी है जो व्यक्तिगत संवाद से आती थी।

हालांकि, यह भी सत्य है कि डिजिटल माध्यमों ने अनेक सकारात्मक अवसर प्रदान किए हैं। दूर देशों में बसे प्रियजनों से पलभर में संवाद स्थापित हो जाता है। विचारों का आदान-प्रदान तेज हुआ है, और सामाजिक आंदोलनों को वैश्विक पहचान भी मिली है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या हम इस सुविधा के साथ अपने रिश्तों की आत्मा को बचा पा रहे हैं?
आज की आवश्यकता है कि हम तकनीक का प्रयोग बुद्धिमत्ता से करें। वर्चुअल संवाद के साथ-साथ प्रत्यक्ष संवाद को भी महत्व दें। समय निकालकर परिवार के साथ बैठें, मित्रों से आमने-सामने मिलें, और भावनाओं को केवल शब्दों या इमोजी में नहीं, बल्कि आत्मीय स्पर्श और सजीव संवाद में अनुभव करें।

डिजिटल साधनों का उद्देश्य मानव जीवन को आसान बनाना है, न कि रिश्तों को कृत्रिम बनाना। हमें तकनीक के साथ-साथ मानवीय मूल्यों को भी समान रूप से संजोकर रखना चाहिए। यही संतुलन हमें एक समृद्ध, सजीव और भावनापूर्ण समाज की ओर ले जाएगा।

प्रतिमा पाठक
दिल्ली

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!