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लेख—संस्कृति व आस्था का अग्र प्रतीक- “ताड़केश्वर् धाम — लक्ष्मी चौहान

संस्कृति प्राकृतिक सौगात नही वरन् सामाजिक धरोहर है।भारतीय समाज में जीवन मूल्यों की भेंट संस्कृति के रूप में सौंपी जाती है। हमें महान नाग परंपरा और अमूल्य क्रियाशील नाग संस्कृति विरासत में मिले हैं।
देवभूमि उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जनपद के विकास क्षेत्र- रिखणीखाल ,पट्टी बिचला बदलपुर में स्थित ताड़केश्वर् धाम प्राग् वैदिक संस्कृति व आस्था का अग्र प्रतीक है। नैसर्गिक सुषमा से अलंकृत यह तप एव्ं संत भूमि अद्वितीय है। मनोहर प्राकृतिक सुंदरता असीम आकर्षण शक्ति समेटे है जो पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। यहाँ का मनमोहक, प्रदूषण रहित, एकांत ,शांत एव्ं दिव्य अलौकिक वातावरण पर्यटकों को आनंद की अनुभूति से भर देता है।साथ ही उनके मानसिक संतुलन को भी बनाए रखता है। मखमली घास के कटोरानुमा विशाल मैदान को प्रकृति ने पूरे मनोयोग से सजाया है। इसी मैदान के बीच में स्थित है ताड़केश्वर् मन्दिर। मन्दिर के भीतर तड़ासर नामक शिवभर नाग की मूर्ति प्रतिष्ठित है। तड़ासर मन्दिर तीन दिशाओं से आने वाली तीन मुख्य निर्मल, मधुर और शीतल जल धाराओं के बीच में स्थित है। तीनों जल धाराएँ ताड़केश्वर् के चरणों को स्पर्श करती हुई पुराने और नये तड़ासर ताल या कुंड में प्रवेश करती हैं। तड़ासर के कुंड और जल धाराएँ इसकी छवि और उपयोगिता को बढ़ाती हैं।
दो ऋतुओं के आने- जाने के मध्य जो नया अन्न उत्पन्न होता है यह हमारे देश में एक बड़े उत्सव का कारण होता है और यही उत्सव ताड़केश्वर् धाम में भी मनाया जाता है जो जेष्ठ और असोज माह के शुक्ल पक्ष के बुधवार या रविवार को दिन में संपन्न होता है। इस मेले में सम्मिलित होने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
ताड़केश्वर् धाम का पौराणिक,ऐतिहासिक,पुरातात्विक, सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक और धार्मिक महत्व है। इको टूरिज्म की दृष्टि से यह सर्वथा उपयुक्त है। तीर्थयात्री या पर्यटक यहाँ आकर गढ़वाली भाषा, ग्रामीण परिवेश, रीति रिवाज, रहन-सहन एव्ं लोक संस्कृति से भी रुबरू हो सकते हैं। यात्रियों की आवाजाही के लिए पौड़ी गढ़वाल जिले के कोटद्वार शहर से यहाँ तक लगभग 74 किलोमीटर लम्बा सुगम बस मार्ग है जिससे यहाँ तक पहुँचा जा सकता है।रामनगर व अल्मोड़ा बस मार्ग से भी यहाँ पहुँचा जा सकता है ।
श्रीमती लक्ष्मी चौहान
कोटद्वार, उत्तराखंड

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