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लघु कथा :- गुरु दक्षिणा — रमेश शर्मा

 

सुरेश जी आज बैंक में घुसे कुछ परेशान नजर आ रहे थे। सुरेश जी सरकारी स्कूल से प्रिसिंपल रिटायर हुए थे। मृदु भाषी सुरेश जी गरीब बच्चों को घर पर बुला कर पढ़ाते थे। गणित के अध्यापक थे। कभी कभी तो फीस और किताबों के पैसे भी गरीब बच्चों के खुद दे देते थे।

काऊंटर पर बैठी महिला ने उन्हें आवश्यक दस्तावेजों की लिस्ट थमा दी। निराश हो कर निकल ही रहे थे कि एक युवक ने आकर उनके पैर छुए और बोला गुरुजी आज यहाँ कैसे? वे बोले क्षमा करना पहचाना नहीं, मैं तो बैंक में लोन लेने आया था लेकिन यहाँ गारंटी की जरूरत है इसलिए वापस घर जा रहा हूँ। वह युवक उन्हें बैंक मैनेजर के केबिन में ले गया। उसने घंटी बजाई। चपरासी को पानी पिलाने और चाय के लिए बोला।
उसने कहा गुरूजी कागज मुझे दीजिये, आपको कितना लोन चाहिए। वे बोले आठ लाख। उसने पेपर भरकर गारंटर की जगह खुद के साइन करके महिला कर्मी को बुला कर बोला। इनका लोन हफ्ते भर में स्वीकृत हो जाना चाहिए। कोई दिक्कत हो तो मुझे बताना।
फिर गुरूजी से बोला मैं रवि जिसकी बारहवीं कक्षा की फीस भरकर आपने मुझे घर पर दो महीने गणित पढ़ाया था। मेरी गणित कमजोर थी।
आपके आशीर्वाद से मैं बारहवीं कक्षा में प्रथम श्रेणी से पास हुआ और आज इस बैंक में मैनेजर नियुक्त हुआ हूँ।
इस तरह रवि ने उन्हें गुरु दक्षिणा दी।
रमेश शर्मा

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