लघु कथा –साहस की प्रतिमूर्ति — लक्ष्मी चौहान ‘रोशनी’

यमुना देवी एक छोटे से गांव में रहती थी। यमुना और उसका पति मेहनत व मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करते थे। उनके दो छोटे बच्चे थे जो अभी स्कूल में पढ़ रहे थे । यमुना एक मेहनती, लगनशील, व्यवहारकुशल व मृदुभाषी महिला थीं । अपनी दैनिक दिनचर्या की तरह ही वह आज भी पशुओं के लिए चारा लेने जंगल गई थी। चारा काटते समय भालू ने उस पर हमला कर दिया । अचानक हुए इस हमले से वह संभल नहीं पाई। हमले से भालू ने उसकी एक बाँह को पूरी तरह से जख्मी कर दिया फिर भी वह भालू का सामना करती रही। फुर्ती से उसने अपनी दराती पकड़ी और भालू पर वार किया। दो-तीन वार करने से भालू भी जख्मी हो गया। वह दर्द से कराह उठा। यमुना खून से लथपथ हो गई । उसने अपने साथियों को आवाज़ लगाई जो इस घटना से अनजान थे। साथियों के शोरगुल को सुनकर भालू जंगल की तरफ भाग गया । उन्होंने फटाफट से अपनी चुनरी से उसके हाथ को बांध दिया और फोन से गांव वालों को इस घटना की सूचना दी। थोड़ी देर के बाद गांव वाले वहां आ गए। यमुना बेहोश हो गई, जब उसे होश आया तो वह अस्पताल में थी। सब ने उसकी बहादुरी की सराहना की और उसके साहस को सराहा। यमुना ने अपनी हिम्मत व साहस से अनहोनी को टाल दिया। हमारे समाज में यमुना जैसी ही कई ‘साहस की प्रतिमूर्ति’ हैं जो दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। यमुना से हमें सीख लेनी चाहिए कि किस तरह से हम विपरीत परिस्थितियों का सामना करके उस पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
श्रीमती लक्ष्मी चौहान ‘रोशनी’
कोटद्वार, उत्तराखंड