Uncategorized

लघुवार्ता : चारित्र्य — पालजीभाई वी राठोड़ ‘

 

छोटा सा गांव में एक संयुक्त परिवार रहता था। उसमें दादा दादी उनके दो बेटे बहुएं पोता पोती रहते थे। उसका नियम था शाम को भोजन बाद दादा दादी हर रोज एक कहानी सुनाते थे। आज दादाजी कहानी सुनाने वाले थे।
दादाजी ने बच्चों को कहा;’प्यारे बच्चों आज में अपने ही गांव का रतनसिंह की कहानी सुनाने वाला हूं’। गौर से ध्यान देकर सुनना। इसके पहले मेरी बात सुनिए।
बचपन से ही हमारे में अच्छे संस्कारों का होना बहुत आवश्यक है। घर में बड़ों का सम्मान करना,अतिथि का आदर सत्कार करना, जरूरतमंदों को मदद करना,हमारे घर कोई याचक आए तो उसको निराश मत करना, गृहस्थ धर्म का पालन करना, सुबह में जल्दी उठ जाना, पूजा पाठ करना, प्रभु की प्रार्थना करना, सत्य बोलना चोरी नहीं करना, खराब आदत नहीं पालन, कोई व्यसन नहीं करना,सदैव अच्छे कर्म करना,अच्छे कर्म से ही हमारे समाज में महान पुरुष बने,कर्म से ही मनुष्य महान है, कर्म से ही सारा जहां है। इस जगत में कर्मों का ही सार है।निस्वार्थ सेवा से बड़ी कोई सेवा नहीं सुनो जहान,मेघ जो अपना बहुमूल्य समय दे होते बड़े महान।इस छोटी छोटी चीजों का ध्यान रखने से हमारे में संस्कार घडतर होता है। इस से हमारा चारित्र्य भी अच्छा होता है। समाज में हमारा सम्मान होता है।
दादाजी ने अब रतन सिंह की बात कहना शुरू किया। रतनसिंह बचपन से ही गांव में टंटा फसाद करता रहता था। उसको शराब पीने की लत थी। जुआ भी खेलता था। इसमें पैसे के लिए चोरी चकोरी भी किया कर लेता था।
बीच में प्रीति ने कहा;’ दादाजी रतनसिंह राक्षस ही होगा।’ दादाजी ने कहा;’ हां बेटा, राक्षस को कोई शींग पूंछ नहीं होती, अच्छे कार्य न करें वो राक्षस!’रतनसिंह चरित्र्य से भी खराब था। गांव के लोग उसे कोई व्यवहार नहीं रखता था।
एक बार रतनसिंह के मन में विचार आया।मै़ गांव में अप्रिय बन गया हूं। गांव में रहना और सबके साथ वेर वैमनस्य रखना अच्छी बात नहीं है। सांप चाहे कितना बड़ा हो, वक्र गति से चलता हो लेकिन दर आते सीधा हो जाता है।
मैं तो इंसान हूं। आज से ही मैं अच्छा काम करना शुरू करूंगा। शुभ कार्य में देर क्या?आज से ही शुभ शुरुआत करनी चाहिए।वो जीना भी है क्या जीना जो अपने ही लिए जीना,जिया जीवन जो औरों के लिए कहते हैं उसे जीना।
रतनसिंह ने शराब जुआ चोरी चकोरी सब छोड़ दिया पर बच्चों सुनो कोरे कागज पर पेंसिल से लिखा हुआ मिटाने के बाद दाग रह जाता है। उसी तरह चरित्र्य भी कोरा कागज की तरह होता है। एक बार दाग लग गया मिटाना मुश्किल। जिसके मन पर नियंत्रण नहीं है उसका चारित्र्य बहुत ही हल्का होता है। जीवन में चारित्र्य मुड़ी है ।चरित्र साफ सुथरा होना चाहिए। तभी लोग हमारे पर विश्वास करेगा। समाज में मान सम्मान मिलेगा।
दादाजी ने कहा; ‘चलो बच्चों रतनसिंह की बात पर थोड़ा गौर करना।सो जाओ और सब बच्चे कल की कहानी सुनने के इंतजार में सो गए।

श्री पालजीभाई वी राठोड़ ‘प्रेम’ सुरेंद्रनगर (गुजरात)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!