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मीरा जी की गुरु भक्ति – स्वर्ण लता सोन

 

मीरा बाई जी बचपन से ही श्री कृष्ण से प्रेम करती थी,एक बार जब उन्होंने एक बारात में दूल्हे को देखा तो अपनी मां से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है,तब मां ने श्री कृष्ण जी की मूर्ति दे कर बोला ये तेरा दूल्हा है। मीरा बाई जी उसी दिन से गिरधर को अपना पति मानने लग गई थी।
वो कृष्ण प्रेम में लीन रहती थी परन्तु ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए एक दिन कन्हैया ने उनको स्वप्न में संत रविदास ,जिन्हें रैदास जी के नाम से जाना जाता है, की शरण में जाने को कहा। मीरा जी ने संत रैदास जी से दीक्षा ली और सदगुरु जी की शरण में जाने के कारण उनको ब्रह्म ज्ञान प्राप्त हुआ,और घट में ही उन्हें श्री कृष्ण के दर्शन हुए।उन्होंने अपने एक भजन में लिखा भी है पायो जी मैने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु किरपा कर अपनायो।।
उन्होंने अपने गुरुदेव को समर्पित कई भजन भी लिखे,जिनमें उनकी गुरु के प्रति आस्था श्रद्धा और आदर व्यक्त होता है।
संत रविदास से नाम दीक्षा प्राप्त करने के बाद उनका अध्यात्म जीवन और भी गहरा हो गया।
उनका कृष्ण प्रेम इतना बढ़ गया कि राणा के द्वारा भेजे हुए जहर,और नाग भी उनका कुछ नहीं बिगड़ सके अंततः उन्होंने अपना महल छोड़ दिया और योगिनी का भेष बना कर इकतारा ले कर निकल पड़ी। वृंदावन होते हुए आखिर में वो रणछोड़ जी के मंदिर जा कर, गिरधर की मूर्ति में ही विलीन हो गईं।
मीरा जी के सुंदर भजन आज भी वातावरण को भक्ति मय कर देते हैं।

स्वर्ण लता सोन

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