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नैना — बिमला रावत

ये कहानी है एक मासूम लड़की नैना की, जिसके माता -पिता शारीरिक रूप से दिव्यांग थे l नैना की माँ पूर्ण रूप से मूक -बधिर थी और पिता बचपन में पोलियो होने के कारण पैरों से चलने -फिरने में असमर्थ थे l वे हाथों के सहारे चलते -फिरते थे l लेकिन उन दोनों की जीवटता को देख सभी दंग रह जाते उनकी दिव्यांगता कभी भी
उनको हताश न कर पाई l
दोनों का जीवन हंसी -ख़ुशी से बीत रहा था l उनकी खुशियाँ उस दिन और बढ़ गई जब एक नन्ही सी कली का आगमन उनके आँगन में हुआ l दोनों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था l उस छोटी सी कली का नाम “नैना ” रखा l नैना की माँ मूक -बधिर थी किन्तु नैना के हाव-भाव को समझकर वह उसकी जरूरतों को पूरा करती, इस कार्य में उनके पति और परिवार के सभी लोग उसकी पूरी सहायता करते l
धीरे धीरे नैना बड़ी होने लगी वो भी अपनी माँ के संकेतो को समझने लगी और दोनों माँ- बेटी एक दूजे से सांकेतिक भाषा में बातें करते और खेलते l अब नैना पढ़ने के लिए विद्यालय जाने लगी, पढ़ाई में होशियार होने के साथ ही वह विद्यालय में होने हर गतिविधि में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती l उसके माता पिता का सिर गर्व से ऊँचा हो गया जब नैना ने हाई स्कूल की परीक्षा 95% अंकों से उत्तीर्ण की और इंटर की परीक्षा भी 90%अंकों से उत्तीर्ण की l अब नैना को डॉक्टर बनकर अपने सपने को पूरा करना था इसके लिए उसने दिनरात परिश्रम किया और परिणाम स्वरूप उसका मेडिकल कॉलेज में प्रवेश हो गया l अब वो दिन दूर नहीं था जब नैना डॉक्टर बनकर अपना सपना पूरा करती l मेडिकल की परीक्षा भी नैना ने सम्मान जनक अंकों से उत्तीर्ण की l डॉक्टर बनकर नैना ने न केवल अपने सपने को अंजाम दिया अपितु अपने अक्षम माता पिता को समाज में उच्च स्थान दिलाया l विपरीत परिस्थितियों ने माता पिता और पुत्री के हौसलों को टूटने नहीं दिया अपितु इरादों को और मजबूत बनाने में मदद की l
आज नैना एक सफल डॉक्टर होने के साथ ही समाज सेविका और �

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