नियागो बस यात्रा – ललिता भोला सखि

अभी दिनांक ३-६-२५ को दिल्ली जाते समय शाजापुर टोल टैक्स पर बस दुर्घटना की याद ताजा हो गई सारा दृश्य नजर के सामने घूम गया!
विश्वकर्मा नौ नम्बर रोड से बेटे ने नियागो एसी इलेक्ट्रॉनिक बस में बिठा दिया कुछ दूर बस चली थी बेटा का फोन आया मम्मी सही से हो ना ठीक से बैठ गये कोई दिक्कत तो नहीं?? मैंने उसे कहा कोई दिक्कत नही है चिंता मत करना अपना ध्यान रखना,इतना कहकर फोन रख दिया!
एक नज़र इधर उधर देखा यात्री सभी अपने अपने में व्यस्त अपने गंतव्य तक पहुंचने का इंतजार कर रहे थे!
कोई फोन में गाना सुन रहा, कोई मूवी देखने में मग्न, कोई महिला अपने छोटे बच्चे को बहला फुसलाकर कर कुछ खाने को दे रही थी, बीच बीच में
वो छोटी सी बच्ची ध्यान खींच लिया करती थी!
बगल की सीट पर एक २२ वर्षीय युवती बैठी थी! बस में बैठे बैठे दो घंटे हो गए थे तब उस लड़की ने पूछा कोई रेस्टोरेंट पर बस रूकती है या नही ? मैंने हां में सिर हिलाया! फिर उसने कहा कब रूकेगी बस ? मैंने उसे समझाया बस कुछ ही देर बाद होटल आ जाएगा वहीं रूकती है बस , फिर वो इत्मीनान से सहजता से बैठ गई! कुछ दूर चलने पर अचानक से ब्रेक लगा सभी यात्री कुछ समझ पाते चीख पुकार मच गई,बस पीछे की तरफ खिसकते चली जा रही थी,उलट पलट जैसी स्थिति हो गई बस की लोग गिर पड़े कोई किसी को संभालने की स्थिति में नहीं था, चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ी मेरा ध्यान खून पर पड़ा जो बस के फर्श,सीट और मेरे कपड़ों पर था , माथे में तथा नाक पर चोट लगने से खून लगातार बह रहा था मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कैसे रोकूं खून इतने में ही एक २२ या २४ वर्ष का लड़का मेरी तरफ भागता हुआ आया देखकर वो घबड़ा गया घबराहट में भी उसने अपना रूमाल निकाल कर दिया,बोला इसे लो आप आंटी! रूमाल से पोंछने लगी परंतु खून बंद नही हुआ ! उसने सहारा देकर उठाया और मुझे बस के नीचे सुरक्षित स्थान पर बैठाया!
सभी यात्रियों को चोट लगी थी बस क्षतिग्रस्त हो गया था सभी यात्रियों में अफरातफरी मची हुई थी सभी अपनो को सूचना दे रहे थे!
एंबुलेंस आई उसमें हम पांच यात्रियों को बैठाया गया मेरे पास जो लड़की बैठी थी उसको भी बहुत चोट आई थी सभी कांप रहे थे घबराहट में!
देखो आप सब कभी एंबुलेंस में बैठे थे आप लोग ? सभी ने ना में सिर हिलाया ! हां मैं भी पहली बार ही बैठी हूं ! जीवन में एक्सिडेंट का अनुभव एंबुलेंस का अनुभव भी ले ही लिया हमने ! ऐसी स्थिति में भी ये बात सुनकर सभी हंस पड़े ! माहौल थोड़ा हल्का हुआ मैंने कहा चोट लगी है तो इलाज हो ही जाएगा, ईश्वर कृपा से सभी की जान बच गई है! जान है तो जहान है अब घबराओ मत जो होगा अच्छा ही होगा अस्पताल में सब संभाल लेंगे डॉक्टर!
हमारे इलाज के बाद वापस हमें होटल छोड़ दिया गया जहां मेरे पति योगेश्वर जी पहले से ही मौजूद थे !
मै उस अनजाने बेटे को भी इस आलेख के माध्यम से धन्यवाद करती हूं जो मुझे घायल अवस्था में संभाला ,मेरी सहायता की !
शिक्षा – कैसी भी विकट परिस्थिति हो हमें घबराना नहीं चाहिए धैर्य से काम लेना चाहिए!
ललिता भोला सखि जयपुर