Uncategorized

प्रेम भक्ति सर्वश्रेष्ठ — उर्मिला पाण्डेय उर्मि

संस्मरण
जब मैं गीता ज्ञान प्रचार समिति में गीता पाठ में गई,तो वह घटना मुझे याद आ रही है कि दुनियां में इतने अहंकारी अभिमानी पुरुष भी होते हैं।
अहंकारी वही होता है जो अज्ञानी होता है।
कहावत है “अधजल गगरी छलकत जाय।,,
आजकल साहित्यकारों की और कवियों की भीड़ बहुत बढ़ गई है। अच्छी बात है नया नया साहित्य लिखा जाय।
आता तो एक शब्द भी नहीं उनसे पूछा जाय कि अर्जुन की भगवान कृष्ण से कौन सी भक्ति थी? नहीं बता पाएंगे।
महतत्त्व क्या है? अहंकार क्या है? प्रकृति क्या है? पुरुष क्या है? प्रकृति का क्या कार्य है? पुरुष का क्या कार्य है? नहीं बता पाएंगे जानते हों तब ना जन्म मरण क्या है? जीव क्या है? आत्मा क्या है? परमात्मा क्या है? विषय क्या हैं? नहीं बता पाएंगे गीता में कौन-कौन सी भक्ति का ज्ञान दिया गया है? मूल प्रकृति क्या है? प्रकृति क्या है? अध्यापक हैं विदेशी भाषा अंग्रेजी के और संस्कृत के गृंथों में भाषण देने के लिए मंचों पर बैठाल दिए जाते हैं। गीता में भगवान ने प्रेमभक्ति भाव को विशेष रूप से महत्वपूर्ण बताया है। प्रेम भक्ति में भगवान का ध्यान करना भगवान के गुणानुवादों का वर्णन अपने कीर्तन द्वारा सत्संग द्वारा किया जाता है।
पिछले वर्ष की बात है माघ मास तिलसटाएकादशी को मैंने लोकगीत राधाकृष्ण का भजन सुनाया तब उसके विरोध में एक ज्यादा अभिमानी अंग्रेजी के अध्यापक सत्यसेवक मिश्रा थोड़ा बहुत गीता पढ़ लिया होगा उसके ऊपर ही अपने को बहुत बड़ा विद्वान मानते हुए कहने लगे कि गीता के उपदेश में ये भजन नहीं होना चाहिये।
मैंने सोचा कि चलिए बड़े बुजुर्ग हैं कोई बात नहीं। अबकी बार भीमसेनी एकादशी पर फिर ऐसा ही हुआ मैनपुरी के जयप्रकाश मिश्रा को उसमें अध्यक्ष बनाया गया जो बिल्कुल भक्ति भावना से रहित। विनोद माहेश्वरी के कहने पर मैंने एक लोकगीत सूरदास जी द्वारा रचित सुनाया चोरी माखन की दे छोड़ कन्हैया मैं समझाऊं तोय।
जय प्रकाश मिश्रा कहने लगे कि माखन चोरी के गीत नहीं गाने चाहिए भगवान माखन नहीं चुराते थे वह तो कंस के पास कर के रूप में माखन न जाने पाय इसलिए गोपियों को रोका करते थे फैलाया करते थे बात सही है परंतु कुछ कवि की भावना प्रधान होती है वह भी विश्व में सबसे श्रेष्ठ वात्सल्य रस सम्राट सूरदास पर ही प्रश्न खड़े करने लगे मुझे समझ में नहीं आता यह किस प्रकार के भक्त हैं। सत्य सेवक मिश्र तो बड़ी मुश्किल से मंच पर गये बोलने के लिए कहने लगे कि यहां ये गीत नहीं होने ये कवि सम्मेलन नहीं है। उन्हें कोई समझाए कि भगवान को प्रेम भक्ति सबसे प्यारी है और प्रेमी भक्त। भगवान कहां निवास करते हैं देखिए –नाहं वसामि बैकुण्ठे योगीनाम् हृदये न च।मदभक्ता: यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद:।। भगवान को कीर्तन भजन करना बहुत प्रिय है। भगवान के ज्ञानी और प्रेमी दो प्रकार के भक्त होते हैं ज्ञानी भक्त का ज्ञान क्षीण होने पर उसका पतन निश्चित है। परंतु जो प्रेमी भक्त होता है वह तो एक बालक की तरह अज्ञानी बनकर भगवान की आराधना करता है।उसका कभी पतन नहीं होता।उसकी रक्षा तो भगवान स्वयं करते हैं।
तभी तो गोपियों की प्रेम निष्काम भक्ति उत्तम है जिसे उद्धव जैसे ज्ञानी योगी पुरुष भी प्रणाम करते हैं नतमस्तक होते हैं।
तुलसीदास ने भी कहा है कि –
रामहि केवल प्रेम प्यारा।जानि लेय जो जानन हारा।।
प्रेम भक्ति सर्वश्रेष्ठ है।
उर्मिला पाण्डेय उर्मि कवयित्री मैनपुरी उत्तर प्रदेश।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!