रामायण की कथा भजन के माध्यम से मेरे शब्दों में -8 – रूपल दवे “रूप”

उन ऋषि परम उदार का,
वाल्मीकि शुभ नाम,
सीता को आश्रय दिया,
ले आए निज धाम।
रघुकुल में कुलदीप जलाए,
राम के दो सुत सिय नें जाए।
इस लाइन में कहा गया है की वे ऋषि बहुत उदार दिल के थे और उनका शुभ नाम वाल्मीकि है जिन्होंने सीता माता को आश्रय यानी सहारा दिया और अपने आश्रम लेकर आये।
फिर कहा गया है की वहा रघुकुल के कुलदीप यानी परिवार के चिराग जन्मे प्रभु श्री राम के दो सुत यानी पुत्र सिया ने जाए यानी जन्म दिया।
( श्रोतागण ! जो एक राजा की पुत्री है,
एक राजा की पुत्रवधू है,
और एक चक्रवर्ती राजा की पत्नी है,
वही महारानी सीता वनवास के दुखों में,
अपने दिन कैसे काटती है,
अपने कुल के गौरव और स्वाभिमान की रक्षा करते हुए,
किसी से सहायता मांगे बिना,
कैसे अपना काम वो स्वयं करती है,
स्वयं वन से लकड़ी काटती है,
स्वयं अपना धान कूटती है,
स्वयं अपनी चक्की पीसती है,
और अपनी संतान को स्वावलंबी बनने की शिक्षा,
कैसे देती है अब उसकी एक करुण झांकी देखिये )
फिर कहा गया है की हे श्रोतागण यानी प्रजाजन! जो एक राजा की पुत्री है,एक राजा की पुत्रवधु है,और एक चक्रवर्ती (पृथ्वी का अधिपति)राजा की पत्नी है वही महारानी सीता वन में रह कर अपने दुखो को कैसे काटती है यानी बिताती है अपने कुल के गौरव यानी अपने पुत्रों और खुद के स्वाभिमान की रक्षा करते हुए,किसी से सहायता मांगे बिना कैसे वो अपना काम स्वयं यानी खुद करती है खुद ही वन से लकड़ी काटती है,खुद ही अपना धान कूटती है,खुद ही अपनी चक्की पिसती है और अपने संतान को स्वावलंबी यानी आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा कैसे देती है अब एक करुण झांकी यानी संक्षिप्त में देखिए।
रूपल दवे “रूप”