राष्ट्रीय एकता लेखनी कायोगदान — डॉ मीरा कनौजिया काव्यांशी

बहुत सुंदर विषय चयन किया गया है।
पूर्व काल से ही लेते हैं जिस समय हमारे देश में विपरीत परिस्थितियांं थी, उस समय भी हमारे साहित्यकार, लेखक, कवि अपनी -अपनी रचनाओं के माध्यम से देश में अमन, चैन शांति के लिए अपनी रचनाएं लिख- लिख कर प्रेषित करते थे। यहां तक कि जब हमारा देश परतंत्र था तब भी कबीर और तुलसी आदि लेखकों ने एक अहम भूमिका को निर्वहन किया और अपनी-अपनी रचनाओं को लिख- लिख कर चैन, अमन ,शांति का संदेश हमेशादिया।
जब हर तरफ से व्यक्ति पराजित हो जाता है तो केवल एक ही माध्यम बचता है ,कि हम साहित्य के द्वारा लेखन कार्यकरके अपने देश में राष्ट्र में, समाज में ,आमूल चूल परिवर्तन लाने का भरसक प्रयास कर सकते हैं, राष्ट्रीय चेतना, जागृति जन आंदोलन, एकता, समन्वय ,स्थापित करने के लिए लेखक की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होतीहै।
लेखक अपनी रचनाओं में प्रेम ,सद्भाव, जिनका मनोबल टूट चुका है, प्रेरणात्मक वीर रस से ओत्प्रोत, राष्ट्रप्रेम ,संदेश से भरी हुई रचनाओं को लिखकर उनके अंदर खोया हुआ उत्साह को प्रोत्साहित, ओजस्विता का समावेश अवश्य कर सकता है।
धर्म जाति ,सांप्रदायिक, समानता की भावना, धर्म संप्रदाय, विविधता में एकता शांतिपूर्ण लेख कविताओं के माध्यम से एकांकी के माध्यम से वह देश में चैन अमन शांति का संदेश , भारतीय संस्कृति संस्कार जो कि विरासत में मिली हुई है उसका उल्लेख और उपलब्धियो के बारे में लिखकर के जन जागृति ला सकता है।
लेखक हमेशा सत्य और निष्पक्ष लिखता है ,वह अपनी बात सर्वधर्म समभाव को लेकर के चलते हैं ,समानता की दृष्टि से सर्वोपरि उन मुद्दों के बारे में लिखना , जो कि सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण है और जो असमानता मे समानता और भेदभाव में एकता को समन्वित करते हैं। अपनी शुद्ध पवित्र पूत पावन भारतीय संस्कृति जो की मनीषी विद्वानों के द्वारा व्यहृवृत की गई है, अपनी लेखनी के माध्यम से व्यक्ति समाज नागरिकों में आत्मसात करने की प्रेरणा प्रदान करता है।
वसुधैव कुटुंबकम की भावना, सर्वप्रिय ,लोकप्रिय, एक थे हम, एक हैं ,एक ही रहेंगे ,अलग हमारे जाति धर्म है, अलग हमारा वेश, फिर भी हमारा जग से न्यारा एक ही भारत देश।
डॉ मीरा कनौजिया काव्यांशी