साअंग अपंग और दिव्यांग एक विश्लेषण क्रमांक 1 — सीमा शुक्ला चांद

वाहन चालक और दृष्टि बाधित
वैसे तो साअंग अपंग और दिव्यांग शिर्षक पर मेरे लेखों में दृष्टिहीन अल्प दृष्टि व दृष्टि बाधित की व्याख्या तथा विष्लेषण मेरे द्वारा किया गया है. आज हम यहां एक दृष्टिबाधित दोष से युक्त दिव्यांग वाहन चालक कैसे हो सकता है कैसे वो आत्मनिर्भर हो अपना कार्य खुद करता है इस बारे में जानने का प्रयास करते हैं. क्योंकि किसी भी विषय का आधा ज्ञान या अज्ञान दोनों ही परिस्थितियों में अंधकार कुलषित मानसिकता का ही उदय होता है.
एक दृष्टिबाधित जीव वह है जिसे ना तो पूर्णरूपेण दिखाई देता है ना ही वो पूर्णरूपेण देखने में असमर्थ होता है अल्प दृष्टि से ग्रस्त जीव भी कुछ हद तक देख सकता है इसलिए शासन ने दृष्टि विकलांगता को तीन भागों में विभक्त किया है.
एक और जब इन अपंग जीवो कुछ दिव्यांगता की बात आती है तब शासन इन्हें आत्मनिर्भर होने के लिए प्रेरित करता है और दूसरी ओर समाज के कुछ तथाकथित अज्ञानी तथा अर्धज्ञानी जीव अपनी कुलषित मानसिकता से इन्हें दिव्यांग होने में बाधा उत्पन्न करते हैं
आज हम दृष्टि दिव्यांगो की आत्मनिर्भरता में वाहनों की भूमिका को समझने का प्रयास करते हैं
एक दृष्टिबाधित या अल्पदृष्टि जीव कुछ हद तक देखने में सक्षम हैं पर पूर्णरूपेण सक्षम नहीं हे, ऐसी स्थिति में वह वाहन कैसे चलाता है यह एक ज्वलंत प्रश्न है.
आईऐ जानते हैं यह कैसे सम्भव है.
दृष्टि बाधित या अल्पदृष्टि जीव यह देख सकता है की उसके सामने कुछ तो है हो सकता है उसे उस कुछ की सही परीभाषा दूर से समझ ना आए पर वाहन चलाते समय सामने कुछ हे यह ज्ञान महत्वपूर्ण है ना की समाने से क्या आप रहा है या क्या स्थापित है अगर किसी जीव को यह आभाष ही हो सकता है की सामने कुछ है तो वह सावधान होकर अपना वाहन नियंत्रण में कर सकता है और अपने कार्य स्वयं करके अपने आप को दिव्यांग बना सकता है
जब भी कोई जीव किसी भी वाहन को चलाता है मुख्यतः दोपहिया वाहन तो उसके हाथों में वाहन का हैंडल होता है जो उसके लिए दृष्टिहिन की लाठी का कार्य करता हैं. जिस प्रकार एक अंधा व्यक्ति लाठी के सहारे रास्ते में आने वाली हर बाधा को जान लेता है ठीक उसी प्रकार रास्ते के गड्ढे अवरोधक पहले वाहन के प्रथम चाक को छूते हैं जिससे हैंडल की मजबूत पकड़ वाहनचालकों का सहारा बन जाती है और वे सुगमता से अपने कार्य पूर्ण कर पाते हैं
प्रत्येक वाहन का निर्माण करते समय निमार्ण करने वाले उधोग वाहन में गतिमापक लगाते हैं जिसकी शुरुआत शून्य से होती है अतः समाज के प्रबुद्ध सदस्यों को यह ज्ञान अवश्य होना चाहिए की कोई भी वाहन शून्य गति से शुरू होकर उसकी अंतिम गति जो मापक में दि गई है चलाई जा सकती है, एक दृष्टि बाधित या अल्पदृष्टि दिव्यांग यदि अपनी देख पाने की क्षमता के अनुसार चाहे तो किसी भी वाहन को चलाने में सक्षम हो सकता है यहां उसे गतिमापक और अपने अवलोकन के सामर्थ्य को समायोजित करना होता है यदि वो ऐसा कर पाया तो वाहन चलाने में उसे कोई खतरा नहीं है
प्रत्येक वाहन चालक चाहे साआंग हो या दृष्टि बाधित सड़क पर अपनी सुरक्षा को देखकर वाहन का उपयोग करता है अतः यदि दृष्टि बाधित या अल्पदृष्टि दिव्यांग सड़क पर वाहन चला रहे हैं तो कोई सा अंग उन्हें जबरदस्ती ठोक कर जाने के लिए वाहन नहीं चलाता.
किसी भी सड़क पर मात्र दुपहिया वाहन ही नहीं अपितु अन्य प्रकार के वाहन भी निरंतर चल रहे होते हैं. यहां यदि दृष्टिबाधित या अल्पदृष्टि वाहन चालक अपनी सूझबूझ वा समज्झदारी से अति सुघड़ता से अपने वाहन को चला सकता है. ऐसा वाहन चालक जो दृष्टि बाधित या अल्पदृष्टि से युक्त है यदि वह अपने देख पाने की क्षमता अनुसार गति केसाथ किसी बड़े वाहन का अनुसरण चलित मार्ग में करता है तो वह कई प्रकार के ख़तरों से बच सकता है तथा कई अवरोधों को सामने चलने वाले वाहन की गति परीवर्तन से ज्ञात कर सकता है.
दरअसल ये दृष्टि बाधित या अल्पदृष्टि जीव दिव्यांग बन सकते हैं परन्तु समाज के कुछ कथित प्रबुद्ध जीवों की कुलषित मानसिकता उनका अल्पज्ञान इन्हें दृष्टिहीन का चोला ओढ़ लेने पर मजबूर करता है.
एक दृष्टिबाधित दिव्यांग होने के नाते मैं शासन प्रशासन की हर पहल के लिए हृदय से आभार अभिव्यक्त करती हूं तथा शासन को प्रत्येक अपंग को दिव्यांग बनाने हेतु सड़को को भी बाधारहित करने का अनुरोध करती हूं. एक सुझाव अपने इस लेख के माध्यम से शासन को सभी अपंगों की ओर से निवेदित करती हूं की शासन हम सभी अपंगों को दिव्यांग बनाने के लिए प्रत्येक सड़क को एक हिस्सा दिव्यांग आवागमन मार्गं के रूप में निर्मित कर दे जिससे हम स्वयं अपना सफर तय कर सकें
सीमा शुक्ला चांद