संक्षिप्त लेख: बदलता हुआ समय — पालजीभाई राठोड ‘प्रेम’

वक्त बदलता रहता है,वक्त के मुताबिक व्यक्ति को जीना पड़ता है।वक्त बहुत का काम करता है स्थिति के अनुसार व्यक्ति को जीना पड़ता है।वक्त पर सब निर्भर निर्धारित रहता है व्यक्ति का अगर वक्त अच्छा हो तो कोई काम किसी तरह किया जाए सफल होता है। यदि वक्त अच्छा चल नहीं रहा हो तो अच्छी तरह किया हुआ कार्य में बांधाएं आती हैं और कार्य बिगड़ जाते हैं। सब वक्त का मारा है। वक्त बहुत अजीब है। वक्त ही सब कुछ करवाता है।मनुष्य सिर्फ पुतलों की भ्रांति नाच रहता है उसकी डोर वक्त के हाथ में होती है वक्त उसे जो चाहे करवाता है।
“समय समय बलवान,नहीं पुरुष बलवान, काबे अर्जुन लूटीयो वो धनुष वो ही बान।” अर्जुन जी ने जब महाभारत की लड़ाई में गांडीव धनुष से कौरवों का विनाश किया था। तब कृष्ण उसकी साथ में था,वक्त उसके साथ में था। पर जब वक्त खराब चल रहा था तो वो धनुष बान होते हुए भी काबा जैसा सामान्य व्यक्ति ने अर्जुन जी को लूट लिया था।यह सब समय का खेल है।व्यक्ति को वक्त को पहचानना आवश्यकता होती है।जो व्यक्ति व्यक्त को जान जाता है उसे कम तकलीफें झेलनी पड़ती है।वक्त के साथ कदम मिलाकर चलना चाहिए।दिन के बाद रात होती है, सुख के बाद दुःख आता है, ऋतुओं का भी परिवर्तन होता है। वसंत के बाद पतझड़ आती है।अनंत का भी अंत होता है।कुछ स्थाई नहीं है। हमारा जीवन भी क्षण भंगुर है। व्यक्ति का सारा जीवन वक्त के मुताबिक चलता है।हर पल हर क्षण हर समय बदलता रहता है।इस तरह वक्त भी एक जैसा नहीं रहता बदलता रहता है मगर हमें धैर्य से काम करना होगा तभी हमारा जीवन सफल होगा। पानी की एक बूंद गर्म बर्तन पर पड़ने से मिट जाती हैं।कमल के पत्ते पर गिरे तो मोती की तरह चमकने लगती हैं। सीप में आये तो खुद मोती ही बन जाती हैं। पानी की बूंद तो वही हैं, बस संगत में फर्क हैं।यह प्रकृति का नियम है, कि अधेरें में मनुष्य स्वयं की परछाई भी साथ छोड़ देती हैं।उसी तरह बुरे वक्त में अपने भी साथ छोड़ देते हैं ऐसे वक्त में धैर्य और संयम से काम ले।जिस घड़ी से मन अपने साथ औरों के लिये शुभ सोचना प्रारम्भ कर देता है सौभाग्य और शान्ति उसी घड़ी आपके जीवन मे प्रवेश कर लेती है ज़रूरत के हिसाब से लोगों से जुड़े रहना सामान्य व्यवहार होता है, लेकिन ज़रूरत के बगैर भी लोगों का ख्याल रखना भाव की पहचान होती है।
“जब भी वक्त न साथ दे हो किस्मत विपरीत,
घबराना मत धैर्य रख सब्र का फल मीठा होत।”
पालजीभाई राठोड ‘प्रेम’
सुरेन्द्रनगर गुजरात,