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संस्मरण: गर्मी की छुट्टीयां और नानी का घर – पालजीभाई राठोड़ ‘प्रेम’

 

स्कूल में जब वेकेशन पड़ता था गर्मी की छुट्टियां में बच्चे नानी के घर जाते हैं। सब को जब छोटे थे तब बेसब्री से गर्मी की छुट्टियों का इंतजार रहा करता था। दोस्तों के साथ खूब खेलेंगे। मामा के घर हम महेमान होते हैं।मामा के साथ खेत में जाना घूमना पक्के आम खाना बहुत मजा आता था।
पड़ोस के खेत में से मीठी मधुरी टेटी खाना और भांजे होने के नाते कुछ बोलना भी नहीं। सब दोस्तों के साथ तालाब में नहाने जाते, तालाब में तैरते, तालाब के किनारे झूला झूलते,
नई नई खेल खेलने की एक अलग ही मजा थी। ना पढ़ने का टेंशन,न होमवर्क की चिंता बस आनंदी आनंद था।किसी भी प्रकार की रोक टोक नहीं होती। कभी कभी मम्मी बोलती तो नानी मम्मी को कहती; ‘बच्चे हैं, धमाल करेंगे थोड़े हम धमाल करेंगे।”
ममा के घर मम्मी सब भाई बहनों में बड़ी, मैं भी मामा के लड़कों में बड़ा इसलिए मम्मी और मेरा मान सम्मान सब रखते थे।
गर्मी की छुट्टियां होने पर मां के साथ हम नानी के घर जाते थे। मम्मी और नानी जब मिलते थे तब दोनों रो पड़ते थे। मुझे ताजुब लगता था कि मम्मी को तो खुश चाहिए मगर रोती क्यों है? बाद में पता चला की बेटी मां से जुदाई के बाद मिलन पर रोती है। हृदय के बंधन है।ये खुशी के आंसू होते हैं।नानी का घर भी अच्छा और स्वभाव भी अच्छा था।नानी रोज सवेरे नया नाश्ता बना देती थी। कभी कभी बाजार में जाकर समोसे, ढोकलें, परोठे,खिलाया करती थी। नानी के घर बहुत खातिरदारी होती थी। कई बार पड़ोस में जाता तो वहां भी मुझे खिलाता। वहां रहने का एक अलग ही आनंद था। शाम को नई कहानी सुनाया करती थी।
छुट्टियां पूरी होते ही हम गांव लौटते। सबको छोड़ना बहुत दुःख होता। अगले गर्मी की छुट्टियों में आने का वादा करते थे। गांव लौटते समय सब मुझे और मेरी मम्मी को पैसे देते थे और कहते थे मम्मी को परेशान मत करना, अभ्यास पर ध्यान देना और एक अच्छा इंसान बनना।
आज भी याद आते हैं गर्मी की छुट्टियां और नानी का घर। बड़े याद आते हैं वो बचपन के दिन!

पालजीभाई राठोड़ ‘प्रेम’ सुरेंद्रनगर (गुजरात)

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