Uncategorized

संवेदनाओं का अंतिम संस्कार – डॉ निर्मला शर्मा

पहले जब किसी की मृत्यु हो जाती थी तब उसकी मृत्यु पर पूरा घर मौन हो जाता था। जिस व्यक्ति की मृत्यु होती थी उसको जमीन पर लिटाकर सिरहाने दीपक जलाकर उसके शरीर को कपड़े से ढक दिया जाता था । पर‌ अब मौत के साथ पहला काम – कैमरा उठाना है। शव के पास खड़े होकर चाहे जैसी स्थिति में प्राण पखेरू उड़े हो, उस स्थिति में मुँह खुला हुआ, हाथ -पैर टेढ़े -मेढे़ , अस्त -व्यस्त फोटो खींचना, फेसबुक पर पोस्ट डालने से हम नहीं चूकते
और कैप्शन हम –
“हमारे पिताजी/माता जी अब नहीं रहे, भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।”
या
“हमारे प्रिय जीजा जी स्वर्गवासी हो गए, प्रभु उनको अपने चरणों में स्थान दें ”
या
“हमारी बड़ी बहन आदरणीय फलाना -ढीमका जी देवलोक गमन कर गई, ईश्वर उनके मन को शांति प्रदान करें।” वगैरह- वगैरह… इस तरह का लगाते हैं।

क्या यही शांति है ?
क्या यही श्रद्धांजलि है ?
क्या उनके प्रति हमारा यही कर्तव्य है ?
जिस चेहरे ने हमें जीना सिखाया, हमारे साथ बचपन बिताया, हमारे साथ हमारा सुख -दु:ख बांँटा हो।
उसी व्यक्ति के मृत शरीर को अब “लाइक” और “कमेंट” के लिए हमारे द्वारा पोस्ट किया जा रहा है।
क्या अब संवेदनाएंँ डिजिटल नहीं हो गई है ?
संवेदनाएंँ अब दिल से नहीं, मोबाइल की गैलरी से निकलती है। हम अब रोते नहीं, हम status update करते हैं।

यह संवेदनहीनता नहीं,
यह संवेदना का सार्वजनिक चीरहरण है।

अब रुकिए। सोचिए।
क्या आपने भी कभी कैमरे के लिए किसी की मौत को पोस्ट बना दिया ?
मरने वाला चला गया, लेकिन इंसानियत की मौत…आपके हाथों हो रही है।
जरा सोचिए जरूर ?
मैं यह नहीं कहती कि मरने के बाद हम दुनिया को यह नहीं बताए कि हमारे घर में किसी की मृत्यु हुई है। जरूर बताए । उनके प्रति विनम्र भाव से श्रद्धांजलि प्रकट करें, लेकिन
तस्वीर वह लगाए जब वह व्यक्ति जिंदा था तब ली गई थी। अपने परिवार के सदस्यों को सम्मान के साथ विदा करना हमारा पहला कर्तव्य होना चाहिए। मरने के बाद उनके मृत शरीर को लोगों के बीच चर्चा का विषय बनाकर हम संवेदनहीनता का सबसे बड़ा उदाहरण बनते हैं और अपनी संवेदनहीनता का विद्रूप रूप प्रस्तुत करते हैं।
हमें हमारे पारिवारिक सदस्य हो, मित्र हो या कोई भी रिश्तेदार हो उनकी मृत्यु पर शोक संवेदनाएं प्रकट करनी चाहिए। लोगों को यह बताना भी चाहिए, लेकिन किस तरह से बताना चाहिए इसकी समझ हमारे भीतर होनी चाहिए। अगर नहीं है, तो फिर हम संवेदना शून्य है। हमें संवेदनाओं की बात ही नहीं करनी चाहिए। बहुत सी बार तो संवेदनहीनता की पराकाष्ठा भी दिखाई देती है कि लोग अपने माता-पिता, भाई -बहन, मित्र, रिश्तेदार किसी के भी मृत शरीर के साथ सेल्फी तक ले लेते हैं। इससे अधिक भौंडापन और क्या हो सकता है। आने वाली पीढ़ी के मन में संवेदनाओं का बीजारोपण करना है, तो हमें इस तरह की ओछी हरकतों पर नियंत्रण करना होगा।
“मरने के बाद सोशल मीडिया पर तस्वीर जरूर डालिए पर बोलती हुई तस्वीर डालिए मरी हुई तस्वीर नहीं।”

©️®️डॉ निर्मला शर्मा

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!