स्वाभिमानी बालक — माया शर्मा

मेरी कार तेज़ रफ्तार से सड़क पर दौड़े जा रही थी ,तभी रेड -सिग्नल
पर गाड़ी रुकी। मैंने वज़ह जानना चाहा और कार का शीशा खोल
बाहर देखने लगी। तभी एक मैले कुचेले कपड़ों एक छोटा बच्चा मेरे पास आया और हाथ जोड़ गिड़गिड़ाते हुए कहने लगा- मेम- साहब दो दिन से कुछ खाया नहीं, घर में माँ बिमार है। बाबा दो साल पहले दुनिया से चल बसे lकुछ दे दो ना l भगवान आपका भला करेंगे। पहले तो मुझे लगा कि वो भीख माँग रहा है फिर सोंचा कि वो सच में भूखा हुआ तो।
मैंने सौ रुपये का नोट उसको थमाते हुए कहा-लो बेटा कुछ खाने का सामान ले आना l ख़ुद भी खाना और अपनी माँ को भी खिलाना। तब उस बच्चे ने कहा -नहीं मेम साहब मैं गरीब जरूर हूँ पर भिखारी नहीं। मैं आपकी कार साफ कर दूँ बदले में आप मुझे पैसे दे देना ।
बच्चे की स्वाभिमानी देख आँखों में पानी आ गया। उसने झट से अपना शर्ट उतारा और मेरी कार को चमका दिया। मैंने उसको उसके काम के बदले सौ का नोट दिया तो खुशी- खुशी अपने घर को दौड़ गया।
मैंने कार से उसका पीछा किया वो एक टूटी हुई झोपड़ी में गया मैं भी कार से उतर कर दबे पाँव उसके पीछे झोपड़ी तक गयी तो देखा वो अपनी बिमार माँ को सम्भाल रहा था।
माया शर्मा/लेखिका