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वैशाली — लता शर्मा तृषा

 

।कथा-पूजा आदि के बाद आचार्य जी ने पंचांग देख और गुणन मनन कर” व “अक्षर से बिटिया का नाम रखने की बात बताए तब बहुत से नामों में माँ राखी को “वैशाली”नाम पसंद आया अतः बिटिया का नाम वैशाली रख दिया गया। तब पता नहीं था वैशाली तो विशाल हृदय की स्वामी निकलेगी।

धीरे धीरे वैशाली बढ़ने लगी, अपने नाम के अनुरूप वो बहुत सरल, सौम्य,सबका दुख दर्द समझने वाली अति समझदार ,मदद को आगे रहने वाली थी।
पढ़ाई में भी तेज थी , पिता की बिमारी के वजह से ग्रेजुएशन के बाद उसने नौकरी कर ली ,पढ़ाई भी जारी रखी ।उसको पैसों से बिल्कुल मोह नहीं अपनी तनख्वाह मां को दे देती,दुसरो का मदद करती,मस्त मौला जीवन जीती । फिर उसकी एक अति सम्पन्न घर ऊंचे पद के लड़के से शादी हो गई।सास की बिमारी में उनका सेवा सुश्रुषा कपड़े से लेकर मैला तक बिना माथे पर शिकन करती,अपनी छै माह की बिटिया माँ के पास छोड़ सासु जी के साथ अस्पताल में रहती।नन्द की सारी फर्माइशें शांति से हंसकर पूरी करती किंतु फिर भी औरत होने का दर्द तो सहना ही होता बात कभी न कभी कहीं न कहीं औकात की आ ही जाती और दिल में चुभते शस्त्र की टीस आंखों की आँसू पीकर अपने नाम की विशालता ,सहृदयता कम नहीं होने देती, ऐसी ही है वैशाली।
मां राखी अक्सर सोचती बड़े बूढ़े सयाने लोग कितने सच कहते थे जैसा नाम वैसा गुण होते हैं बच्चों के।

लता शर्मा तृषा

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