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वो मेरा दर्द..डॉ इंदु भार्गव जयपुर

 

यह सिर्फ एक वाक्य नहीं, बल्कि एक पूरी कहानी है—एक ऐसा अनुभव जो शब्दों से नहीं, केवल दिल से महसूस किया जा सकता है। जीवन के किसी मोड़ पर हर व्यक्ति को कोई न कोई ऐसा दर्द जरूर मिलता है जो उसे भीतर तक झकझोर देता है। वह दर्द बाहर से नहीं दिखता, लेकिन अंदर गहरे घाव छोड़ जाता है।

मेरा दर्द एक खोए हुए रिश्ते का था। एक ऐसा रिश्ता, जो बहुत कीमती था, पर समय और हालात ने उसे मुझसे छीन लिया। वो मेरा सबसे करीबी दोस्त था—जिससे मैं अपने हर सुख-दुख साझा करता थी। हम साथ हँसते थे, सपने देखते थे, और ज़िंदगी की छोटी-छोटी बातों में खुशियाँ ढूंढ़ते थे। लेकिन एक दिन अचानक कुछ ऐसा हुआ जिसने सब कुछ बदल दिया।

गलतफहमियाँ, अहंकार, और न कहे गए शब्दों का बोझ इतना बढ़ गया कि हम अलग हो गए। कोई लड़ाई नहीं हुई, कोई विदाई नहीं हुई—बस एक खामोशी थी, जो अब तक कायम है। वही खामोशी बन गई है मेरा दर्द”।

इस दर्द ने मुझे बहुत कुछ सिखाया—सबसे बड़ी बात यह कि रिश्तों में संवाद कितना जरूरी होता है। भावनाएँ अगर समय रहते ज़ाहिर न की जाएँ, तो वे बोझ बन जाती हैं, और वही बोझ दूरी बनाता है।

आज भी जब मैं उन बीते पलों को याद करती हूँ, दिल भारी हो जाता है। लेकिन अब मैंने उस दर्द को अपनी ताकत बना लिया है। मैं सीखी हूँ कि दर्द को दबाने के बजाय समझना और उससे सीखना ज़रूरी है। वह दर्द अब भी है, लेकिन वह मुझे कमजोर नहीं करता, बल्कि और मजबूत बनाता है।

“वो मेरा दर्द…” अब सिर्फ एक टीस नहीं, बल्कि मेरी आत्मा का एक हिस्सा है—जो मुझे इंसान होने का असली मतलब समझाता है!!
डॉ इंदु भार्गव जयपुर

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