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यात्रा संस्मरण – हिम्मत चोरड़िया प्रज्ञा

 

एक बार हम लोग बंगलोर से कोलकाता आ रहे थे। खड़गपुर स्टेशन आया। 6-7 बच्चे हमारी सामने वाली बर्थ खाली पड़ी थी आकर बैठ गये। आपस में बातें कर रहे थे। स्कूल ड्रेस पहने हुये थे। बीच-बीच में जेब से निकाल कर पुडिया खा रहे थे। मैं भी उनकी बातें सुन रही थी। काफी देर तक उनका सिलसिला यूँ ही जारी रहा । उनको बारबार पुड़िया खाते देखी तो मेरे से रहा नही गया, मैं बोली ‘बेटे यह आपको खा रहा हैं या आप इसको खा रहे हैं ‘? इतना कहना हुआ कि 15-16 साल का लड़का सीट से उठा और बोला कि आँटी इतने दिन तो मैं इनको खाता था आज के बाद से मेरे को ये नहीं खाएँगें और जेब वाले बचे हुये पैकेट खिड़की से बाहर फेंक दिये। पास वाले दो लड़के बोले आँटी एक साथ संभव नहीं एक सप्ताह तक खाएँगें नहीं आपसे वादा है। बाकी तीन बच्चे बोले आंटी लाचार हैं छूटेंगे नहीं,पर कम करने की आदत डालेंगे। वह बालक जब उतरा तो प्रणाम किया बोला आँटी आप मुझे सदैव याद रहेंगी भले ही मैं आपको नहीं जानता हूँ। आज भी वह लड़का याद आता है भले ही एक घंटा मेरे साथ रहा।
आज घटना याद आती तो उस बच्चे का दृढ़ संकल्प व त्वरित निर्णय पर आश्चर्य आता है कैसे गलती मानकर आगे बढ़ गया।
हिम्मत चोरड़िया प्रज्ञा
कोलकाता

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