Uncategorized

यह मंथरा मांगे न्याय — उर्मिला मोरे

मैं त्रेता युग की मंथरा आज अपनी वेदना व्यक्त करते हुए आप सबसे न्याय मांगने आई हूं। कि मेरा नाम युगो युगो से इतनी घृणा से क्यों लिया जाता है? कोई भी अपनी बेटी का नाम मंथरा नहीं रखता ।कहीं भी कोई झगड़ा हो ,घर टूटता हो तो यही कहा जाता है कि जरूर किसी मंथरा ने आकर आग लगाई होगी मेरा नाम घर फोडु के नाम से क्यों इस्तेमाल किया जाता है? मैं पूछती हूं कि मेरा क्या दोष था? देवता नहीं चाहते थे कि राम राजा बने उन्होंने तो मेरा इस्तेमाल करके मेरी जिह्वा पर सरस्वती को विराजमान किया जिससे मैं कैकई कोउकसाऊ कि वो राजा दशरथ से दो वरदान मांगे ।पहला भरत का राज्याभिषेक हो और दूसराराम को 14 वर्षों का बनवास मिले। मैं तो मात्र महल की दासी थी। मेरे लिए तो राम राजा बने या भरत मेरे क्या फर्क पड़ता?
कोई नृप होई हमें क्या हानि
चेरी छाड अब होबकी रानी
उसके बाद भी मेरा अपमान रुका नहीं भरत शत्रुघ्न जब ननिहाल से लोटे पता लगने पर शत्रुघ्न द्वारा मेरे केश को पकड़ कर घसीटते हुए राज दरबार के बीच में लाया गया और मृत्युदंड देने की घोषणा की गई ।यह तो बीच में रानी कौशल्या ने आकर बीच बचाव किया ।मृत्यु दंड की जगह काल कोठरी की सजा दी गई यह तो और भी भयानक थी। अगर मृत्यु दंड पाजाती तो एक बार में ही त्रास से मुक्ति पा जाती पर काल कोठरी में रहना कितना भयानक होता है यह तो कोई भुक्तभोगी ही जान सकता है ।
अगर मैंने ऐसा किया भी तो क्या गलत किया ।उस समय पूरा ब्रह्मांड राक्षसों के आतंक से त्राहि-त्राहि कर रहा था। ऋषि मुनियों के द्वारा किए गए यज्ञ में राक्षस विष्टा गंदगी गिराकर यज्ञ विध्वंस कर रहे थे ।घर में नारियों की इज्जत सुरक्षित नहीं थी ।सीता का उदाहरण आपके सामने है ।हर प्राणी आतंकित था तब राम ने वानर भालुओकी सहायता लेकर बड़े-बड़े राक्षसों यानी रावण, कुंभकरण ,मेघनाथ का सन्घार किया अगर राम जी वनवास नहीं जाते, अयोध्या में रहते हैं तो यह संभव हो पाता क्या ?इतना ही नहीं बनवास काटकर अयोध्या वापस लौटे तो जोराम बनवास जाते हुए महज राजकुमार राम थे ,वह अयोध्या में वापस आकर राजा रामचंद्र रामभद्राय रघुनाथ इत्यादि असंख्य उपाधियो से विभूषित हुए उनके स्वागत में पूरी अयोध्या दीपो की कतार से सजाई गई ।अमावस्या की रात पूर्णिमा की रात में परिवर्तित हो गई । यह परंपरा आज तक भी निभाई जाती है। अब भी दीपावली की रात में घर हो दुकान हो, कार्यालय हो हर जगह दीप माला सजाई जाती है ऐसा महसूस होता है जैसे आज ही राजा रामचंद्र बनवास काटकर अयोध्या लौटे हैं ।मैं कहना चाहती हूं पूरे ब्रह्मांड को मेरा आभार मानना चाहिए कि उन्हें आतंक से मुक्त करने के लिए मैं निमित्त बनी तो। अन्त मैं आप सबसे गुजारिश करती हूं कि सम्मान मत दीजिए पर जो घर फोड़ू की प्रतीक बन गई हूं कम से कम उससे तो मेरे को मुक्त करिए ।निर्णय आपके हाथ में है।

उर्मिला मोरे

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!