योग — डॉ मीरा कनौजिया

प्रतिदिन कीजिए योग,योग हमारे जीवन का आधार।
चुस्त दुरुस्त मन,स्वास्थ स्वस्थतन , नहीं कोई बीमार।
नित्य प्रात: काल उठ कीजिए, नियम योग अभ्यास।
चंचल मन स्थिर करें, ओ3म गुंजित ,करे प्राणायाम।
प्रातः काल भ्रमण करें, तन को रखें, हमेशा निरोग।
शुद्ध प्राण वायु ग्रहण कीजिए, प्रतिदिन कीजिए योग।
शुद्ध ताजा भोजन ग्रहण कीजिए, फलों का समाहार।
उदर दुरुस्त,पानी खूब पिए, चाहे प्यास लगे दस बार।
मन एकाग्रचित, तन हल्का-फुल्का प्रसन्न, होता कल्याण।
कपालभाति ,अनुलोम विलोम, नव स्फूर्ति नव चेतन प्राण।
स्वस्थ तन में स्वस्थ मन करे निवास , निद्रा तंद्रा कोसों दूर ।
स्वाल्पाहारी बने, संतुलित भोजन, विटामिन्स रहे भरपूर।
संयमित मन, इंद्रिय निग्रह, जागो उठो प्रकृति का कथन।
यम नियम का करो नियमित पालन, प्राणों का हो संतुलन।
अवसाद ग्रसित मन होता प्रसन्न,उमंगित जीवन मनोरंजन।
चंचल नेत्र मूंद, एकाग्रचित मस्तिष्क, अंतर चेतन जागरण।
रक्तचाप न कदापि, कब्ज दूर, कोसों दूर मधुमेह बीमारी।
सुप्त मस्तिष्क चैतन्य, जागरूक, योग सतत है गुणकारी।
डॉ मीरा कनौजिया
काव्यांशी स्वरचित मौलिक रचना