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अनुभूति — डॉ० रश्मि अग्रवाल ‘रत्न’ लघु कथा

सुनीता के मन का परिन्दा उन्मुक्त हो उड़ता रहा ।
सौरभ से पहली मुलाकात की याद में धड़कन की साज पर तरन्नुम छेड़ता रहा । मेरी आत्मा अब भी सौरभ का करती इन्तजार है। काश वो मुझे समझ पाते । उनकी एक पुकार पर मैं दौड़ी जाती उनके पास । भूलभुलैया -सी मेरी जिन्दगी भ्रमित होकर भटक रही ।
तभी उनका फोन आया । मेरा मन मयूर नाच उठा । फोन पर सौरभ से बात हुई। सारे गिले – शिकवे दूर हुए । उनके संवाद में मेरे प्रति प्यार की तड़प थी । तो मुझे लेने आ रहे हैं। खुशी की ये अनुभूति बयाँ करना मेरे लिए मुश्किल था । आज मैं बेहद खुश हूँ।
डॉ० रश्मि अग्रवाल ‘रत्न’