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अपरवासी-स्वदेशी

 

इस लेख की प्रेरणा मेरा बच्चा है। किसी ने कहा कि देश के विशेष योग्यता रखने वाले बच्चे बाहर देशों में चले ,जाते
उन्हें देश में रहकर सेवाएं देनी
चाहिए।मैं कहती हूं कि पहले तो वो योग्यता के बल पर जाते हैं और फिर योग्यता के बल पर ही अकेले आगे बढ़ते हैं । और देश का नाम रोशन करते हैं।
वहां जाते हैं तो पिछे माता -पिता भी याद करते हैं।
उस मां से पूछो उसका लाल
विदेश में अकेले दम‌पर खान -पान, रहने करने की सभी समस्याओं का अकेले सामना करता है।
और एक फौजी जवान की तरह देश की सेवा भी करता है। कैसे -वो वहां से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा (डालर) वगैरह भेजता है परिवार के पास या स्वयं की स्थिर संपत्ति
(बंगला) केलिए तो उससे भी देश की अर्थव्यवस्था में योग -दान होता है। ऐसे हजारों बच्चे विदेशो में रहकर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करते हैं।
जय -हिन्द।

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