दंतकथा — लता शर्मा तृषा

दंतकथा किसी ग्रंथ ,पुराण, पुस्तक में वर्णित प्रमाणित नहीं है यह मुंह जुबानी सुनाई जाने वाली कहानी है जिसके द्वारा ज्ञान की बात बताई सुनाई जाती है। समझिए यह कर्म,प्रयास,युक्ति द्वारा मुसीबत से बचा निकलने का तरीका, माध्यम दादी नानी के द्वारा सुनाई जाने वाली कहानी ही है ।
एक राजा के बाग में नाना प्रकार के फूल, फल के पेड़ पौधे लगे थे उसके देख रेख,खाद पानी डालने हेतु राजा ने माली रखे थे।माली प्रतिदिन सुबह शाम पेड़ पौधों में पानी डालता बड़े प्रेम से पौधों को सहेजता,बाग में तरह तरह के फल के पेड़ थे उनमें अंगूर की बेलें भी थी उन बेलों में अंगूर लग आए थे ।
उस बाग में एक चिड़िया आती फलों को खाने उसने अंगूर फले देखा तो रोज सुबह आकर मीठे अंगूर का मजा लेने लगी।माली उसको भगा भगा परेशान हो जाता पर वह रोज न केवल अंगूर पेट भर खाती बल्कि काफी अंगूर नीचे गिरा भी देती।तब माली ने राजा से जा उस चिड़िया की शिकायत कर दिया ।
राजा को बड़ा क्रोध आया वे अंगूर बेल के पास छुपकर बैठ गए और जब चिड़िया आई तो उसे पकड़ कर चिड़िया पर गुस्सा करने लगे कि तुम मेरे बाग के अंगूर खाती हो। चिड़िया रुंवासी हो गई उसको राजा के चंगुल से छुटने की तरकीब सोची।
चिड़िया राजा से बोली -यदि आप मुझे छोड़ दोगे तो मैं ज्ञान की बात बताऊं!रजा के पुछने पर चिड़िया बोली सुनो.. कभी किसी अपरिचित की बात मानो मत,
किसी अंजान पर विश्वास करो मत।
राजा बोले ठीक है। फिर चिड़िया बोली आप पकड़ कुछ ढीली करो मेरा दम घुट रहा है अभी सबसे बड़े ज्ञान की बात सुनानी रह गई है,राजा ने चिड़िया पर अपनी ढ़ीली कर दी और चिड़िया उड़ पेड़ पर जा बैठी बोली,राजा जी हाथ आए अवसर को कभी जाने नहीं देना चाहिए।आपने यह अवसर खो दी और मैं अपनी युक्ति लगा कर आजाद हो गई।
यह होता है कर्म,प्रयास ,सूझ बूझ,और युक्ती जिसके बूते मुसीबत से बचा जा सकता है।
लता शर्मा तृषा