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लघु वार्ता: बारिश की वो रात – पालजीभाई राठोड़ ‘प्रेम’

 

किशन और काजल दोनों बचपन से ही साथ में खेलते कूदते थे। साथ में ही पढ़ते थे। बचपन का वो स्नेह अब प्रेम में परिवर्तित होने लगा।दोनों एक दूसरे को चाहने लगे थे। एक दूसरे के बिना वो रह नहीं सकते थे। समय निकालकर मिल लिया करते थे।एक दिन काजल ने उसकी मम्मी से कहा;’मम्मी,किशन मेरा बचपन का दोस्त है। बहुत अच्छा लड़का है। मुझे पसंद भी है। हम एक दूसरे को दिल से समझते हैं। हम एक दूसरे को चाहते हैं। हम दोनों की इच्छा ब्याह करने की है।’ काजल की मम्मी ने उत्तर दिया;’ बेटा,मैं तेरी मां हूं।तेरी बात सही है मैं समझ सकती हूं।’ किशन गरीब है मगर अच्छा लड़का है। बचपन से मैं भी उसको जानती हूं। मगर तेरे पिताजी का स्वभाव तुम जानती नहीं हो। इस बात करने से वो भड़क उठेगा। वो तो तेरा ब्याह उसकी बराबरी करने वाला धनाढ्य मोभादार परिवार में करना चाहते हैं। किशन गरीब परिवार से है। इस रिश्ते को वो मान्यता नहीं देंगे। किशन ने भी पिताजी को बात की कहा; ‘पिताजी,मैं और काजल एक दूसरे को पसंद करते हैं।’हम दोनों की इच्छा है कि हम ब्याह कर ले।पिताजी ने कहा;’बेटा,काजल के पिताजी को में बरसों से जानता हूं।’ बहुत अभिमानी।हम गरीब हैं वो तवंगर है इसलिए वो संबंध के लिए तैयार नहीं होगा। मैं बात करूं फिर भी वह नहीं मानेगा। बात करने का कोई मतलब नहीं है।किशन और काजल ने बहुत सोचा और तय किया कि अब किसी को भी इस बारे में बात कर ने का कोई मतलब नहीं है। हम दोनों को प्रेमलग्न कर लेना ही उचित मार्ग है। एक बार रात को किशन और काजल घर छोड़कर भाग गया। रात अंधेरी थी।अचानक घने बादल घीर आयें। मुशलाधार बारिश होने लगी। बिजली ईतनी जोरदार कडकी केशव और काजल दोनों के सीने से लगी और डर से कांपने लगे।किशन ने काजल को अपनी बाहों में ले लिया। कितनी देर तक ऐसे ही खड़े रहा पता नहीं चला।बारिश की वो रात उस को भी याद रहेगी।बरसात थोड़ा रुक गया था दोनों आगे बढ़ा। बिजली की चमक से एक मंदिर दिखाई दिया। किशन और काजल बरसात से बचने के लिए मंदिर में गया। देखा तो राधा कृष्ण का मंदिर था। दोनों ने मंदिर में रात बीताई। दोनों भगवान को प्रार्थना करने लगा;’प्रभु, हम दोनों की रक्षा करना। हमारा प्रेम सच्चा है। अचानक उस को विचार आया। हम अभी यहां भगवान को साक्षी मानकर शादी कर ले तो और दोनों ने एक दूसरे को फूलहार किया, वरमाला पहनाई।किशन ने काजल के माथे पर सिंदूर भरा। दोनों एक दूसरे सुख दुःख के साथी बनने का प्रण भी लिया।
प्रेमलगन करने के बाद थोड़े दूर गए तो एक रेलवे स्टेशन आया। गाड़ी में बैठकर दूर निकल गए। कहां जाना क्या करना कुछ मंजिल नहीं थी। भगवान के भरोसे बस यहां से दूर निकल जाए।जहां अपने माता पिता तो क्या पुलिस को भी पता ना लगा सके। यही सोचकर दूर दूर एक छोटा सा गांव खेत में ही मकानें
इतनी झाड़ी की कुछ दिखाई ना दे। दूर से बस घनी झाडी ही दिखे। दोनों वहां पहुंच गए। खेत में वृद्ध दंपति काम कर रहे थे। उसके पास गया और अपनी सब हकीकत की। वृद्ध दंपति बहुत अच्छे थे।उस ने यहां खेत में रहने की अनुमति दी। वृद्ध दंपति को भी कोई संतान नहीं था। उसने सोचा मानो हमारी डूबती नैया को किनारा मिल गया। कोई मंजिल नहीं थी मंजिल मिल गई। भगवान ने इन दोनों को हमारे पास भेजा है।किशन और काजल भी वृद्ध दंपति कोअपने माता पिता मानने लगे।खेत में काम करते और उस की सेवा करता। वृद्ध दंपति ने अंतर से दोनों को आशीर्वाद दिया। दोनों आराम से सुख चैन से रहने लगे।मेरा मानना है कि व्यक्ति धन वैभव या नाम से बड़ा नहीं होता
बड़ा वो होता है जो
समय पर मुश्किल में किसी के काम आए
जिसका मन व्यक्तित्व बड़ा और जिसमें इंसानियत हो।

श्री पालजीभाई राठोड़ ‘प्रेम’ सुरेंद्रनगर गुजरात

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