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मेरे पिता की प्रेरक सीख — प्रतिमा पाठक

 

बचपन की एक शाम आज भी स्मृति में ताज़ा है। मैं स्कूल से लौटकर उदास बैठी थी। परीक्षा में नंबर कम आए थे और सहेलियाँ मज़ाक बना रही थीं। पिताजी ने देखा, पास आकर सिर सहलाया और पूछा,
क्या हुआ बेटा?
मैंने आँसू भरी आँखों से उत्तर दिया-मैं कभी आगे नहीं बढ़ सकती पापा मुझसे नहीं होगा।
पिताजी मुस्कराए। बोले चलो, तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ।
उन्होंने कहा- एक बार एक छोटा सा बीज था, जो सोचता था कि मैं तो इतना छोटा हूँ, पेड़ कैसे बनूँगा? लेकिन उसने हार नहीं मानी, मिट्टी की अंधेरी परतों में दम साधे पड़ा रहा। बारिश आई, धूप मिली और वो अंकुर बन फूटा। धीरे-धीरे वो एक घना वृक्ष बन गया जिसकी छाँव में लोग बैठते थे।
फिर पापा ने मेरी ओर देखा और बोले-बेटा, हर व्यक्ति बड़ा बनने से पहले छोटा होता है। असली बात यह है कि तुम रुको नहीं प्रयास करती रहो। असफलता अंत नहीं होती बल्कि नई शुरुआत का अवसर देती है।
उनकी बातों ने जैसे मेरे दिल को छू लिया। उस दिन के बाद मैंने न हार मानी, न खुद को कम समझा। खूब मेहनत की,समय का सदुपयोग किया और हर बार गिरने के बाद दुगुनी स्फूर्ति के साथ उठी।
आज जब जीवन में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ रही हूँ, तब पिताजी की वो एक सीख मेरा आधार बनी हुई है—
*असफलता से घबराओ मत, वो तो सफलता की पहली सीढ़ी होती है*।
प्रतिमा पाठक
दिल्ली

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