रुकिए तो जनाब… हमारी भी सुन लेते जरा – पवन मल्होत्रा एडवोकेट की कलम से

हर काव्य सम्मेलन का रब ही मालक होता है,
हिट और फ्लॉप करने में कवि ही चालक होता है !
आयोजक सिर्फ सजाता है महफ़िल के रंगरूप को,
कार्यक्रम में सबको बांधने वाला मंच संचालक होता है !!
रुकिए तो जनाब… हमारी भी सुन लेते जरा
प्रोग्रामों में अक्सर अलग अलग अंदाजो का मेल हैं,
अपनी कह कर खिसकने वालों का हर जगह अनोखा खेल है !
मंच संचालक वरिष्ठता के नाते पहले उन्हें मंच पर बुलाता है,
उनके हाथ में माइक जाते ही फिर कुछ भी ना कर पाता है !!
रुकिए तो जनाब… हमारी भी सुन लेते जरा
अपनी प्रस्तुति से ज्यादा मंच पर खुद ही अपनी महिमा गाते हैं,
समूह में आए उनके साथी, उनकी वाह-वाह गजब कराते हैं !
जीजा जिसकी साली न हो , महफ़िल जिसमें ताली न हो का शेर सुना-2 कर,
सभी कवियों से हर दो लाइन बाद जबरदस्ती ताली बजवाते हैं !!
रुकिए तो जनाब… हमारी भी सुन लेते जरा
प्रस्तुति दे, आयोजक की दावत उड़ा, बीच में ही निकल लेते हैं,
अपने समूह के अलावा किसी और का नंबर आने ही कहाँ देते हैं !
बेचारे नवोदित कवि उनसे पहली बार मिल उनकी पूरी गाथा गाते हैं,
अपनी प्रस्तुति पर उनको जाते देख फिर दिल से यही गुहार लगाते हैं !!
रुकिए तो जनाब… हमारी भी सुन लेते जरा
क्षमा चाहता हूँ मेरे चुभते शब्दों पर, मेरे दिल का यही अरमान है,
सब के विचारों को सुनना और बढ़ावा देना , काव्य जगत का ये सम्मान है !
काश हम अपनी सुनाकर दूसरे की सुनने के लिए अंगद के पाँव की तरह अड़े,
नए नवेले मुझ जैसे नौसिखिए कवि को जोर जोर से ये ना पुकारना पड़े !!
रुकिए तो जनाब… हमारी भी सुन लेते जरा
पवन मल्होत्रा एडवोकेट