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सामाजिक सुरक्षा पेंशन: आम आदमी का हक — दीपक शर्मा शिक्षाविद्, सामाजिक चिंतक एवं अधिवक्ता

 

भारत जैसे विकासशील देश में सामाजिक सुरक्षा पेंशन एक ऐसा माध्यम है, जिसके जरिए बुजुर्ग, विधवा, विकलांग और अन्य वंचित वर्गों को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार प्राप्त होता है। यह न केवल एक कल्याणकारी योजना है, बल्कि यह संविधान द्वारा प्रदत्त ‘समानता और जीवन जीने के अधिकार’ की व्यावहारिक अभिव्यक्ति भी है। आम आदमी के लिए यह पेंशन किसी सहारे से कम नहीं है
सामाजिक सुरक्षा पेंशन का उद्देश्य उन व्यक्तियों को आर्थिक सहायता प्रदान करना है जो समाज की मुख्यधारा से पीछे छूट जाते हैं। विशेषकर वृद्धजन, विधवाएं, दिव्यांगजन और निर्धन परिवारों के सदस्य — जिन्हें काम करके आजीविका चलाना कठिन हो गया है। इस योजना के माध्यम से सरकार यह सुनिश्चित करती है कि जीवन के उत्तरार्द्ध में भी कोई व्यक्ति भूखा या बेसहारा न हो ,
सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं का आम आदमी के जीवन में प्रभाव बहुआयामी है:
यह पेंशन वृद्ध या असहाय नागरिक को दैनिक जरूरतें पूरी करने में मदद करती है।
पेंशन मिलने से आत्मनिर्भरता की भावना आती है और वे दूसरों पर निर्भर नहीं रहते।
छोटी राशि होने के बावजूद इससे पोषण, दवाइयां और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं मिल जाती हैं।
सामाजिक सुरक्षा: पेंशन के माध्यम से व्यक्ति खुद को समाज का हिस्सा महसूस करता है।सामाजिक सुरक्षा पेंशन केवल एक वित्तीय सहायता नहीं, बल्कि आम आदमी की गरिमा से जुड़ा संवैधानिक अधिकार है। यह योजना न सिर्फ बुजुर्गों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक सामाजिक उत्तरदायित्व का प्रतीक है। सामाजिक सुरक्षा पेंशन आम आदमी के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक अधिकार है, और इसका विधिक (कानूनी) आधार भारत के विभिन्न संवैधानिक प्रावधानों, क़ानूनों, और सरकारी योजनाओं में निहित है। इसका विधिक आधार स्पष्ट है:
भारतीय संविधान में
अनुच्छेद 41 – राज्य का नीति निदेशक सिद्धांत
यह कहता है कि राज्य, आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के अधीन रहते हुए, बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी और विकलांगता जैसी स्थितियों में नागरिकों को सार्वजनिक सहायता (public assistance) प्रदान करेगा।
अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
“जीवन का अधिकार” केवल अस्तित्व नहीं, बल्कि गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार देता है। इसमें सामाजिक सुरक्षा पेंशन एक महत्वपूर्ण योजना है ।
यह योजना सामाजिक सुरक्षा पेंशन की प्रमुख विधिक संरचना देती है।
उच्चतम न्यायालय के निर्णय

ऑल इंडिया जजेस एसोसिएशन बनाम भारत सरकार (1992)
• न्यायालय ने कहा कि सामाजिक सुरक्षा एक मौलिक अधिकार का हिस्सा है, और राज्य का यह कर्तव्य है कि वह नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करे।

ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम (1985)
न्यायालय ने कहा कि जीवन का अधिकार केवल शारीरिक अस्तित्व नहीं, बल्कि सुरक्षा, गरिमा, और सामाजिक अधिकारों तक पहुँच को भी शामिल करता है।

अन्य विधिक और नीति उपकरण
_ विकलांग व्यक्तियों का अधिकार अधिनियम, 2016
_वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007
_ये अधिनियम सामाजिक सुरक्षा और पेंशन के लाभों को संस्थागत रूप देते हैं।
सामाजिक सुरक्षा पेंशन का आम आदमी के लिए विधिक आधार संविधान के नीति निदेशक सिद्धांतों, जीवन के अधिकार, विभिन्न सामाजिक योजनाओं और न्यायालयों के फैसलों में निहित है। हालांकि ये “मौलिक अधिकार” के रूप में लागू नहीं होते, फिर भी राज्य का नैतिक और विधिक दायित्व बनता है कि वह इन्हें प्रभावी रूप से लागू करे।जरूरत है कि इसे राजनीतिक वादे की बजाय मानवीय संवेदना और संवैधानिक जिम्मेदारी के रूप में लिया जाए। एक शिक्षाविद् और अधिवक्ता होने के नाते मेरा यह मानना है कि यदि हम समाज के सबसे कमजोर वर्ग को सामाजिक सुरक्षा नहीं दे सकते, तो विकास का कोई भी दावा अधूरा रहेगा।
क़लम से-
दीपक शर्मा
शिक्षाविद्, सामाजिक चिंतक एवं अधिवक्ता

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