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सावन मे साजन का इंतजार — डॉ इंदु भार्गव

घन बरसे और बदन बोले, मोरा मनवा नाचे रे,
प्रिय मिलन की बाट जोहूँ, अधरों पर प्यास साजे रे।
कजरी सी रुनझुन छेड़े, छन छन पायल की धुन,
सावन आया साजन बनके, सपनों में फिर आज रे!!
भीग गई चूनरिया मोरी, जब प्रिय ने छू लीया हिय,
सावन की रुत रंग लाई, भर आई मन की बात।
भींगे केशों में उलझी सुध-बुध, सांसों में खुशबू घोले,
रिमझिम फुहारों संग साजन, प्यार के दीपक बोले!!
कोयल कुहके, पात हिले हैं, बागन में रस घुल जाए,
सावन की हर बूँद हमें, तेरी याद दिलाए।
प्रिय की उँगली थामे चली, पथ भीगे मधुर मिलन के,
नेह की छतरी तले सजे, प्रेम कथा की छाए!!
डॉ इंदु भार्गव जयपुर